ध्रुव राठी ने किया कमाल !

पूरी दुनिया में झूठ एक नई चुनौती बनकर उभरा है. झूठ की दीवार हमारे आस पास बड़ी होती जा रही है और चौड़ी भी होती जा रही है. झूठ की इस दीवार को भेदना आसान नहीं है. व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के ज़रिए रोज़ना कई प्रकार के झूठ फैलाए जा रहे हैं. धर्म, देश, रंग, जाति, व्यक्ति, योजना से लेकर इतिहास तक पर झूठ की परत जमी दी गई है. अब तो आलम यह है कि कहीं चुनाव होता है तो इस झूठ को पकड़ने के लिए नागरिकों, पत्रकारों का समूह सक्रिय हो जाता है. फिर भी राजनीतिक दलों ने झूठ को फैलाने का तंत्र इतना बड़ा कर लिया है कि यह तभी चेक होगा जब मुख्यधारा का मीडिया इसे एक्सपोज़ करेगा. मगर मुख्यधारा का मीडिया खासकर भारत में, ऐसा नहीं कर पाता है. बल्कि वह भी झूठ के इस तंत्र को बड़ा कर रहा है. बिना तथ्यों की जांच किए बयानों को छाप रहा है, उन्हें मान्यता दे रहा है.







नोटबंदी पर ही देखेंगे कि हिन्दी के कई बड़े अखबारों में वित्त मंत्री जेटली और राहुल गांधी के बयान को अगल-बगल छाप दिया और जनता पर छोड़ दिया कि आप तय कर लें. जबकि मीडिया का एक तीसरा काम भी है कि वह खुद भी तथ्यों का पता लगाए और दोनों पक्षों के दावों पर सवाल खड़े करे. झूठ के इस फैलते साम्राज्य ने पाठक होने और दर्शक होने की भूमिका बदल दी है. अब आप सिर्फ देख कर या पढ़ कर न तो दर्शक हो सकते हैं या न पाठक हो सकते हैं. दुनिया भर में कई नेता ऐसे उभर आए हैं जिनके आगे झूठ होता है, पीछे झूठ होता है मगर ये इतने ताकतवर हैं कि इनके झूठ को पकड़ना खुद को दांव पर लगाने जैसा है.







यूट्यूबर ध्रुव राठी को कई लोग जानते होंगे. यू ट्यूब पर ध्रुव राठी ने अपना एक चैनल बनाया है जिसे नौ लाख से अधिक लोग फॉलो करते हैं. जिस तरह से अहमदाबाद में बैठकर प्रतीक सिन्हा और उनकी टीम ऑल्ट न्यूज़ के ज़रिए झूठ को एक्सपोज़ करते रहते हैं वही काम ध्रुव राठी भी करते हैं जर्मनी में रह कर. यह काम मुख्यधारा के मीडिया का है मगर मीडिया ने खासकर न्यूज़ चैनलों ने इसे आसानी से आउटसोर्स कर दिया. जो काम चैनलों का था, वो काम अब प्रतीक सिन्हा और ध्रुव राठी कर रहे हैं. यानी अब झूठ को पकड़ना है तो निजी रूप से जोखिम उठाइये.अमरीका में तो वाशिंगटन पोस्ट बकायदा गिनती रखता है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने कितना झूठ बोला है. 2 नवंबर को वाशिंगटन पोस्ट ने छापा था कि राष्ट्रपति ट्रंप ने 649 दिनों में 6,420 झूठ या भरमाने वाले बयान दिए हैं. इसका औसत यह हुआ कि राष्ट्रपति प्रति दिन पांच झूठ या भरमाने वाली बात करते हैं. भारत में भी इसी तरह से झूठ की गिनती हो सकती थी, मगर जो गिनेगा उसी के दिन गिनती के रह जाएंगे. भारत में मुख्यधारा की मीडिया का बड़ा हिस्सा भले ही इस झूठ के साथ हो गया है मगर अब भी कुछ पत्रकार हैं, कुछ वेबसाइट हैं, एक आध चैनल भी हैं जो इस झूठ को पकड़ रहे हैं.

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