जब लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri लगभग डेढ़ साल के हुए तो प्लेग जैसी भयंकर बीमारी फैलने के कारण इनके पिता का निधन हो गया ऐसे समय में परिवार की सारी जिम्मेदारी इनकी माँ के ऊपर आ गया और फिर इनकी माँ अपने बच्चो के साथ अपने मायके मुगलसराय में आ गयी फिर इनका पालन पोषण इनके नाना और मामा के कन्धो पर आ गया इनके मामा उस समय गाजीपुर में क्लर्क पद पर कार्यरत थे और फिर कुछ समय पश्चात इनके नाना का भी निधन हो गया जिसके पश्चात इनका पालन पोषण इनके मामा और मौसा ने उठाया
फिर इनकी प्रारम्भिक शिक्षा रामनगर में हुई उस समय अच्छे स्कूल न होने के कारण इन्हें पढने के लिए दूर पैदल ही जाना पड़ता था
जब लाल बहादुर शास्त्री 6 वर्ष के थे तब ये अपने दोस्तों के साथ पैदल ही रोज स्कूल जाते थे एक दिन की बात है जब स्कूल से घर वापस लौटते थे तब रास्ते में एक आम का बगीचा पड़ता था लाल बहादुर शास्त्री और इनके सभी दोस्त आम के बगीचे में घुसकर आम तोड़ने लगे इसी बीच अचानक बाग़ का माली आ गया सभी दोस्त तो दूर भग गये लेकिन लाल बहादुर शास्त्री सबसे छोटे थे पकड़े और फिर माली ने इनको पकड़ कर पीटना चाहा
Lal Bahadur Shastri बोले “मै सबसे छोटा और अनाथ हु आप मुझे मत पीटिये” इस पर माली को दया आ गयी और बोला “चूकी तुम्हारे पिता भी नही है तुम्हे तो और अच्छा आचरण सीखना चाहिए और कभी चोरी नही करना चाहिए” इन शब्दों का लाल बहादुर शास्त्री पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा वे अपने दृढ के पक्के पूरे जीवन पर ईमानदारी के राह पर चले कभी इसके बाद उन्होंने कोई झूट या चोरी का सहारा नही लिया जिसके कारण आज भी ईमानदारी के लिए लाल बहादुर शास्त्री को याद किया जाता है
लाल बहादुर शास्त्री का प्रारम्भिक जीवन
लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri बचपन से ही पढने में तेज थे और मात्र 10 साल की आयु में ही छटवी क्लास पास कर लिया था अपनी प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू पढने के पश्चात आगे की पढाई करने के लिए बनारस चले आये और फिर अपना प्रवेश हरिश्चन्द्र हाईस्कूल में लिया और फिर आगे की पढाई काशी विद्यापीठ से पूरा किया और विद्यापीठ से “शास्त्री” की उपाधि प्राप्त किया और फिर अपने नाम से अपने “श्रीवास्तव” जाति हटाकर जीवन पर्यन्त “शास्त्री” शब्द लगा लिया और इस प्रकार लाल बहादुर को लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri के नाम से जाना जाने लगा
इसके पश्चात सन 1928 में इनका विवाह मिर्जापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ जिससे उनके 6 संताने हुए जिनमे दो पुत्रिया कुसुम और सुमन नाम है जबकि 4 बेटो के नाम हरिकृष्ण, अनिल, सुनील और अशोक है
लाल बहादुर शास्त्री का क्रांतिकारी जीवन
Lal Bahadur Shastri Freedom Fighter Life Details in Hindi
सन 1921 में महात्मा गाँधी के आह्वान पर पूरे देश में अंग्रेजो के खिलाफ असहयोग आन्दोलन की शुरुआत हुई तो भारत को आजादी दिलाने के लिए पूरा देश उमड़ पड़ा तब लाल बहादुर शास्त्री भी अपने देश के खातिर घरवालो के मना करने के बावजूद इन्होने अपनी पढाई छोड़ दी और असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े और फिर अंग्रेजो द्वारा इन्हें भी गिरफ्तार कर लिया लेकिन मात्र 17 वर्ष की आयु होने के कारण इन्हें बाद में छोड़ दिया गया फिर आगे चलकर विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त किया था जिसका वर्णन हम पहले ही कर चुके है
फिर इसके पश्चात लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri प्रत्यक्ष रूप से गांधीजी के साथ जुड़ गये और सन 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन में बढ़चढ़कर भाग लिया और लोगो को एकजुट करने का प्रयास करने लगे जिसके पश्चात फिर अंग्रेजो के द्वारा इन्हें गिरफ्तार कर लिया और फिर उन्हें ढाई साल की जेल की सजा हुई जहा उन्हें जेल में अनेक क्रन्तिकारी समाज सुधारको से इनकी मुलाकात हुई जिनसे लाल बहादुर शास्त्री काफी प्रभावित हुए
इसी दौरान लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri के बेटी का बहुत ज्यादा तबियत ख़राब हुआ फिर अंग्रेजो ने उनके सामने यह शर्त रखी की वे अपने बेटी से तभी मिल सकते है जब यह लिखकर दे की वे फिर कभी स्वन्त्रन्ता आन्दोलन में भाग नही लेंगे लेकिन बचपन से ही स्वाभिमानी और अपने देश भक्ति के प्रति गहरे लगाव के कारण वे ऐसा कदापि करना उचित नही समझा क्यूकी ऐसा करना वे अपने आत्म सम्मान के विरुद्ध मानते थे और उन्होंने कभी भी अंग्रेजो के सामने घुटने नही टेके.
और फिर आजादी के दौरान मरो या मारो का नारा दिया जो की अंग्रेजी शासन को भागने के लिए काफी था इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri जी गांधीजी के आदर्शो पर चलकर आजादी की लडाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और और आजादी मिलने के बाद सक्रीय रूप से कांग्रेस के नेता बन गये
लाल बहादुर शास्त्री का राजनितिक जीवन
Lal Bahadur Shastri Political Life in Hindi
आजादी मिलने के पश्चात लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri भारत के प्रथम कार्यवाहक रेलमंत्री बनाये गये तब इसी दौरान एक भयंकर रेल दुर्घटना हो गयी फिर घटना पर इस पर अपनी इरादे के अटल और दिल से नरम लाल बहादुर शास्त्री ने कहा की “यदि मेरे रेलमंत्री रहते हुए ऐसी कोई भी घटना होती है तो इसके लिए मै स्वय जिम्मेदार हु”इसके पश्चात उन्होंने तुरंत रेलमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया इस निर्णय से पूरा देश लाल बहादुर शास्त्री के समर्थन में उतर पड़ा और यहाँ तक की तत्कालीन प्रधानमन्त्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने संसद में लाल बहादुर शास्त्री के फैसले की जमकर तारीफ की और कहा की ऐसे ईमानदार छवि से लोगो में एक नई दिशा की शुरुआत करेगा
सन 1964 में अचानक नेहरु के अचानक निधन के पश्चात इनकी ईमानदार छबि के चलते इन्हें 9 जून 1964 को भारत का दूसरा प्रधानमंत्री (Prime minister) बनाया गया फिर 18 महीने के कार्यकाल में एक प्रधानमंत्री के रूप में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा सन और फिर 1965 में पाकिस्तान द्वारा भारत पर अचानक से हमला कर दिया जिस पर राष्ट्रीय आपदा से निपटने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति ने आपातकाल बैठक बुलाया जिसमे सेना के तीनो सेना अध्यक्ष और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri शामिल हुए
तब सेना के तीनो अध्यक्षों ने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से सवाल किया की “सर इस स्थिति से निपटने के लिए क्या करना चाहिए” तो अदम्य दृढ साहस के प्रतिमूर्ति लाल बहादुर शास्त्री ने एक टुक में कहा “ आप देश की रक्षा के लिए को जो करना है करिए आप लोगो के साथ पूरा देश है और हमे बताईये की हमे क्या करना है”
इसके पश्चात तो सेनाओ में जोश भर गया और फिर पाक को भारतीय सेना द्वारा मुहतोड़ जबाव दिया गया जिसकी कल्पना शायद उस समय के पाक राष्ट्रपति अयूब खान ने भी नही की थी और भारतीय सेना अपनी विजयी पताका तो लाहौर तक फहरा दिया था इस युद्द में पाकिस्तान को काफी नुकसान उठाना पड़ा भारतीय सेना द्वारा पाक के 260 टैंक में से 245 टैंक नष्ट कर दिए गये थे
फिर युद्द को रोकने के लिए अमेरिका द्वारा धमकी दिया गया और कहा गया की यदि भारत युद्द नही रोकता है उसे अनाज देना बंद कर दिया जायेगा इस पर स्वाभिमानी प्रधानमंत्री ने एक टुक में अमेरिका को जवाब दिया की “हम एक वक्त खाकर गुजारा कर सकते है लेकिन किसी के आगे झुकने को तैयार नही है”
उस समय हमारे देश में अनाज की काफी किल्लत थी खाने के अनाज हमे विदेशो से मगाना पड़ता था इसी समस्या को समझते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने देश को सम्बोधित करते हुए “जय जवान जय किसान” का नारा दिया जिसके चलते पूरा भारत दिन में सिर्फ एक बार ही खाना खाता था और रविवार के दिन सभी उपवास भी रखने लगे थे लाल बहादुर शास्त्री के इसी नारे ने पूरे देश के जवानों में उर्जा भर दिया था और अब किसान भी खेतो में जाकर जमकर मेहनत करने लगे और लाल बहादुर शास्त्री द्वारा दिया गया नारा अज भी हमारे देश उतना ही प्रसिद्द है जितना उस समय था
फिर युद्ध को रोकने के लिए पाकिस्तान से रूस और अमेरिका से गुहार लगायी फिर इसके पश्चात लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri थोडा नम्र हुए और उन्होंने इन देशो की बात मान ली और जिस देश की सेनाये जहा थी वही तक रुक गयी और फिर युद्ध का शांतिपूर्ण हल के लिए दोनों देशो के प्रधानमंत्री को रूस ने अपने शहर ताशकंद में बुलाया
लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मृत्यु
आख़िरकार रूस और अमेरिका के चलते लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए ताशकंद गये और फिर इसी शर्त के साथ वे हस्ताक्षर करने को तैयार थे की भारत द्वारा जीती गयी जमीन दुबारा पाकिस्तान को नही दी जायेगी फिर काफी जद्दोजहद के पश्चात लाल बहादुर शास्त्री जी युद्ध विराम पत्र पर हस्ताक्षर करने को राजी हुए और इसके बाद युद्द रुक गया और फिर कुछ घंटे के पश्चात ही 11 जनवरी 1966 को आधी रात में लाल बहादुर शास्त्री जी रहस्मय परिस्थितियों में मौत हो गयी
और इनकी मृत्यु का वास्तविक स्थिति को पता लगाने के लिए पोस्टमार्टम तक नही हुआ केवल दुनिया में यह खबर फैला दिया की लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri की मौत हार्टअट्टेक से हुआ है जिसका खुलासा आज तक नही हो पाया है लेकिन उनके साथ गयी उनकी ललिता के अनुसार लाल बहादुर शास्त्री को जहर देकर मारा गया है क्यूकी लाल बहादुर शास्त्री के मृत्यु के पश्चात इनका शरीर नीला पड़ गया था और इस प्रकार लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri की मृत्यु कैसे हुई है आजतक रहस्य बना हुआ है
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