राजनेताओं-अफसरों से साठगांठ से चुटकियों में माल्या को मिल जाते थे करोड़ों के लोन
नई दिल्ली, जेएनएन। एक समय ऐसा था, जब शराब कारोबारी विजय माल्या ने केंद्रीय मंत्रियों से लेकर अधिकारियों तक को अपने वश में किया हुआ था। भगोड़े माल्या के खिलाफ सीरियस फ्राड इनवेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) की रिपोर्ट वित्तीय अनियमितताओं को ढंकने के लिए राजनेता-कारोबारी गठजोड़ के बारे में बताती है।
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के सीरियस फ्राड इनवेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) का दावा है कि शराब कारोबारी विजय माल्या ने वित्तीय अनियमितताओं के लिए राजनीतिक संबंधों का इस्तेमाल किया, इस कारण बैंकों को 9,000 करोड़ रुपये की हानि हुई।
यह रिपोर्ट उस दस्तावेजों का हिस्सा है जिसे विजय माल्या के भारत में प्रत्यर्पण सुनिश्चित करने के लिए भारतीय एजेंसियां वेस्टमिंस्टर कोर्ट, लंदन के सामने पेश करेंगी। अदालत ने चार दिसंबर को मामले पर सुनवाई होगी और 15 दिसंबर तक जारी रहेगी।
एसएफआईओ की रिपोर्ट बताती है कि माल्या ने नियमों को तोड़कर कैसे सबसे शक्तिशाली राजनेताओं को अपने वश में किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी उसकी गलतियों पर सवाल नहीं उठाए।
बड़े नेताओं ने की थी माल्या की मदद
रिपोर्ट में बताया गया है कि तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री तथा केंद्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला जैसे लोगों ने किस प्रकार माल्या की मदद की। 18 फरवरी, 2009 को माल्या के एक मेल से पता चलता है कि मुख्य वित्तीय अधिकारी एके रवि नेदुंगाडी और अन्य ने लिखा था कि किंगफिशर के वित्तीय पुनर्गठन को तत्कालीन वित्त मंत्री ने अनुमोदित किया था।
मंत्री की उपस्थिति में अफसरों को दिया आदेश
माल्या ने शरद पवार की उपस्थिति में तत्कालीन मुख्य आर्थिक सलाहकार को सलाह दी थी कि सरकार किंगफिशर एयरलाइंस (केएफए) का समर्थन करेगी। माल्या ने 25-26 फरवरी 2009 को बैंकों के तत्कालीन सचिव और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और पंजाब नेशनल बैंक के अध्यक्ष के साथ बैठक की थी। 2010 में माल्या के साथ ईमेल से पत्राचार में बैंक के तत्कालीन संयुक्त सचिव अमिताभ वर्मा ने किंगफिशर एयरलाइंस लिमिटेड (केएफएएल) की फंड जरूरत पर सवाल खड़े किए। 13 मई, 2010 को विजय माल्या ने प्रतिक्रिया दी कि इस बारे में उन्होंने शरद पवार ने तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से बात करने के लिए कहा था।
फारूख अब्दुल्ला, प्रफुल्ल पटेल ने की थी मदद
माल्या के एक अन्य ईमेल से पता चलता है कि उसने जम्मू कश्मीर के नेशनल कांफ्रेंस के नेता और तत्कालीन मंत्री फारूक अब्दुल्ला से बात की थी कि जम्मू-कश्मीर बैंक से संबंधित समस्या का समाधान निकाला जाए। शराब कारोबारी के एक मेल से पता चलता है कि तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने माल्या के बिगड़ते विमानन व्यवसाय के लिए केएफएएल के वित्तीय पुनर्गठन के पक्ष में मदद की थी।
नेताओं और उनके परिवार को कराई जाती थी मुफ्त यात्रा
केएफएएल सेल्स टीम के प्रबंधकों के बीच आपसी मेल से पता चलता है कि राजनेताओं से अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए एयरलाइन में बिना किसी अतिरिक्त भुगतान के उन्हें और उनके परिवारों को बिजनेस या प्रथम श्रेणी में यात्रा कराई जाती थी। ऐसा ही एक मेल तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके साथी के यात्रा संबंधी अपग्रेडेशन को दिखाता है।
एक और ईमेल के मुताबिक, विजय माल्या ने जम्मू-कश्मीर चुनाव अभियान के दौरान फारूक अब्दुल्ला द्वारा उपयोग किए जाने वाले एक हेलिकॉप्टर के लिए भुगतान किया था। केएफएएल के लाभ के लिए बाद में इस छूट का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर बैंक के शीर्ष प्रबंधन पर दबाव डालने के लिए किया गया था।
अफसर भी इस्तेमाल करने में पीछे नहीं रहे
यही नहीं, वित्त मंत्रालय, कस्टम, आयकर, केंद्रीय विमानन महानिदेशालय और भारतीय हवाईअड्डे प्राधिकरण के अधिकारियों ने भी विमान सेवा में छूट का इस्तेमाल किया। एसएफआईओ की अपनी रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला है कि विजय माल्या और उनके शीर्ष प्रबंधकों ने विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के प्रमुख अधिकारियों को खुश करने के लिए मुफ्त टिकटों का इस्तेमाल किया और केएफएएल में अनियमितताओं को बनाए रखने के लिए उनके साथ मिलकर काम किया। विजय माल्या ने अधिकारियों से खुद को और उनकी कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए एक हथियार के रूप में मुफ्त टिकटों का उपयोग किया।
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