कानपुर। गणेश महोत्सव की धूम पूरे शहर में हैं। भक्त गणपति बप्पा की मुर्ति अपने घरों के अलावा पंडालों में सजा रहे हैं। पूरा शहर भगवान गणेश के नाम से सराबोर है। पर हम आपको एक ऐसे गणेश मंदिर के दर्शन करवाने जा रहे हैं, जिसका स्वरूप एक तीन खंड मकान जैसा है। इसके साथ ही यहां भगवान गणेश के 10 रूप एक साथ मौजूद है। यूपी का यह इकलौता मंदिर कानपुर के घंटाघर के पास स्थित है, जिसे अंग्रेज हुकूमत के दौरान मुम्बई के लोगों ने बनवाया था। मंदिर के पुजारी खेमचंद्र गुप्ता बताते हैं कि अंग्रेज सरकार लोगों को धर्म जाति और मजहब के नाम पर लोगों को बांट रही थी। छुआछूत को रोकने के लिए बालगंगाधर तिलक ने यहां पर गणेश मंदिर के निर्माण के साथ महोत्सव की शुरूआत की थी। लेकिन इसके लिए उन्हें अंग्रेजों से भिड़ना पड़ा था। क्योंकि यहां भगवान गणेश का मंदिर बनने के दौरान अंग्रेजों ने रोक लग दिया था। क्योकि इस मंदिर के 50 मीटर की परिधि में एक मस्जिद मौजूद थी। जिस पर अंग्रेज अधिकारियों का तर्क था कि मस्जिद और मंदिर एक साथ नहीं बन सकते। ऐसे में यहां मंदिर बनवाने के बजाय 3 खंड का मकान बनवाकर भगवान गणेश को स्थापित किया गया था।
बालगंगाधर ने रखी थी नींव
अंग्रेजों के खिलाफ बिठूर से 1857 की शुरू हुई गदर पूरे देश में फैल गई। गोरों को देश से खदेड़ने के लिए क्रांतिकारी लड़ रहे थे, तो फिरंगी भी हुकूमत बचाने के लिए नए-नए हथकंडे आजमा रहे थे। इसी दौरान उन्होंने जाति, मजहब के नाम पर लोगों को बांटना चाहा, लेकिन बालगंगाधर तिलक ने उनके मंसूबों में पानी फेर दिया। सबसे पहले 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरुआत की। इसके बाद कानपुर में लोगों को जोड़ने के लिए घंटाघर चौराहे पर 1908 में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करवाई और महोत्सव मनाने का ऐलान कर दिया। मंदिर के पुजारी खेमचंद्र गुप्ता कहते हैं तिलक जी ने यहां भूमि पूजन किया और गणपति के लिए एक पांडाल लगवाया। पांडाल में सैकड़ों की संख्या में लोग आते और जिन्हें अंग्रेजों के साथ ही छुआछूत के खिलाफ लड़ने के लिए जागरूक किया गया।
प्लॉट में मंदिर का करवाया निर्माण
मंदिर की देखभाल करने वाले खेमचन्द्र गुप्त ने कहा, मेरे बाबा के कुछ महाराष्ट्र के व्यापारिक दोस्त थे जो ज्यादातर व्यापार के सिलसिले में गणेश उत्सव के समय कानपुर आया करते थे। इन लोगों की भगवान गणेश में अटूट आस्था थी और वो भी उस समय गणेश महोत्सव के समय घर में ही भगवान गणेश के प्रतिमा की स्थापना कर पूजन करते थे, और आखिरी दिन बड़े ही धूमधाम से विसर्जन करते थे। ’उनदिनों पूरे कानपुर में यहां अकेले गणेश उत्सव मनाया जाता था। इनकी भक्ति को देख इनके महाराष्ट्र दोस्तों ने उस खाली प्लाट में भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित कर वहा मंदिर बनवाने का सुझाव दिया था। बाबा रामचरण के पास एक 90 स्क्वायर फिट का प्लाट घर के बगल में खाली पड़ा था। जहां इन्होंने मंदिर निर्माण करवाने के लिए 1908 में नीव रखी थी।
स्थापना के लिए आए थे तिलक
1921 में बाल गंगाधर ने इस मंदिर में गणेश प्रतिमा की स्थापना के लिए स्पेसल कानपुर आए थे। तिलक जी ने यहां भूमि पूजन तो कर दी मगर मूर्ति स्थापना नहीं कर पाए क्योकि पूजन के बाद किसी आवस्यक काम की वजह से उनको जाना पड़ा। इसी दौरान अंग्रेज सैनिको को यहां मंदिर निर्माण और गणेश जी की मूर्ति के स्थापना की जानकारी मिली तो उन्होंने मंदिर निर्माण पर रोक लगा दी थी। अंग्रेज अधिकारियों ने इसके पीछे तर्क दिया कि पास में मस्जिद होने के कारण यहां मंदिर नहीं बनवाया जा सकता है। क्योंकि कानून के मुताबिक़ किसी भी मस्जिद से 100 मीटर के दायरे में किसी भी मंदिर का निर्माण नहीं किया जा सकता। अंग्रेज अधिकारियों के मना करने के बाद रामचंद्र ने कानपुर में मौजूद अंग्रेज शासक से मुलाक़ात की मगर बात नहीं बनी।
अंग्रेज अफसरों से की बात
कानपुर के लोगों ने इसकी जानकारी गंगाधर तिलक को दी। उन्होंने दिल्ली में अंग्रेज के बड़े अधिकारी से मिले और मंदिर स्थापना के साथ मूर्ति स्थापना की बात कही। इसपर दिल्ली से 4 अंग्रेज अधिकारी कानपुर आए और स्थिति का जायजा लिया था। अंग्रेज अधिकारी ने वहां गणेश प्रतिमा की स्थापना करने की अनुमति तो दी मगर इस प्लॉट पर मंदिर निर्माण की जगह दो मंजिला घर बनावाने की बात कही। ऊपरी खंड पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करने को कहा ’जिसके बाद यहां 2 मंजिला घर बनाया गया और पहले तल पर भगवान गणेश की प्रतिमा को रामचरण गुप्त ने स्थापित किया। इस 3 मंजिल खंड में निचे वाले खंड पर ऑफिस और आने वाले श्रद्धालुओं के जूते चप्पल रखने का स्थान दिया गया। पहले तल पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित है। जबकि दूसरे ताल पर भगवान गणेश के 9 अवतार रूपी मूर्ति के साथ एक 10 सिर वाले गणेश जी रखे गए।
ऋद्धि और सिद्धि विराजे
इस मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की संगमरमर के पत्थर के मूर्ति के अलावा उनके सामने पीतल के गणेश भगवान के साथ उनके बगल में ऋद्धि और सिद्धि को भी स्थापित किया गया है। इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां भगवान गणेश के दोनों बेटे शुभ - लाभ को भी स्थापित किया गया है। इसके अलावा दूसरे खंड पर भगवान गणेश के नौ रूप को पुजारियों के कहने पर स्थापित किया गया था। इसके अलावा इस मंदिर में भगवान गणेश का एक मूर्ति ऐसा है जिसमे दशानन की तरह दस सिर लगे हुए है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि इसी मंदिर में सभी धर्म, मजहब और जाति के लोग बिना रोक-टोक आते हैं और भगवान गणेश के दर सिर झुकाकर मन्नत मांगते हैं।
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