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१८/०८/२०१८

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी दूरगामी सोच, कविताओं, पोखरण टेस्ट, कारगिल में भारत को मिली जीत और अंतर्राष्टीय स्तर पर भारत का कद बढाने के लिये हमेशा याद किया जायेगा। वे देश के लिये पिता तुल्य थे जिनमें न सिर्फ पार्टी को बल्कि बिपक्ष को साथ लेकर चलने की अद्भुत क्षमता थी। ई &ई न्यूज़ अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर अत्यंत दुःख व्यक्त कर रहा है
अटल के अटल किस्से
१८/०८/२०१८
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी दूरगामी सोच, कविताओं, पोखरण टेस्ट, कारगिल में भारत को मिली जीत और अंतर्राष्टीय स्तर पर भारत का कद बढाने के लिये हमेशा याद किया जायेगा। वे देश के लिये पिता तुल्य थे जिनमें न सिर्फ पार्टी को बल्कि बिपक्ष को साथ लेकर चलने की अद्भुत क्षमता थी। ई &ई न्यूज़ अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर अत्यंत दुःख व्यक्त कर रहा है
अटल के अटल किस्से
अटलजी की टेलीकॉम पॉलिसी में क्या थी खास बात?
- 1994 में देश में नई टेलीकॉम पॉलिसी आई, उस वक्त कांग्रेस की सरकार थी और पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे। इस पॉलिसी के आने के वक्त टेलीकॉम सेक्टर की ग्रोथ 1.2% थी, जो 1999 में बढ़कर 2.3% हो गई। हालांकि पहली बार 31 जुलाई 1995 में मोबाइल फोन पर बात हुई थी, लेकिन उससे पहले ही देश में संचार क्रांति की शुरुआत हो चुकी थी। 1999 में अटल सरकार नई टेलीकॉम पॉलिसी लेकर आई, जिसमें लाइसेंस फीस को हटाकर रेवेन्यू शेयरिंग की व्यवस्था की गई।
1 मिनट फोन पर बात करने के लिए लगते थे 16.80 रुपए :दरअसल, पहले टेलीकॉम ऑपरेटर्स को नेटवर्क का इस्तेमाल करने के लिए हर साल लाइसेंस खरीदना होता था, जो काफी महंगा होता था। रिपोर्ट के मुताबिक, ऑपरेटर्स को हर ग्राहक पर 6,023 रुपए सरकार को सालाना देने होते थे। इस पैसे को कंपनियां अपने ग्राहकों से वसूलती थी, जिसकी वजह से कॉल रेट्स काफी महंगे होते थे और 1 मिनट फोन पर बात करने के लिए 16.80 रुपए चुकाने होते थे।
- लेकिन अटल सरकार ने इस लाइसेंस फीस को खत्म किया और रेवेन्यू शेयरिंग की व्यवस्था की। दरअसल, 1999 में 22 टेलीकॉम ऑपरेटर्स ने एक रिपोर्ट में बताया कि उन्हें 7,700 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ थी। जिसके बाद वाजपेयी सरकार में रेवेन्यू शेयरिंग की व्यवस्था हुई। इस नई व्यवस्था के बाद कंपनियों को अपने सालाना रेवेन्यू का 15% सरकार को देना होता था। इससे टेलीकॉम कंपनियों को फायदा हुआ, क्योंकि लाइसेंस फीस देना रेवेन्यू शेयरिंग के मुकाबले काफी महंगा हुआ करता था।
- लेकिन अटल सरकार ने इस लाइसेंस फीस को खत्म किया और रेवेन्यू शेयरिंग की व्यवस्था की। दरअसल, 1999 में 22 टेलीकॉम ऑपरेटर्स ने एक रिपोर्ट में बताया कि उन्हें 7,700 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ थी। जिसके बाद वाजपेयी सरकार में रेवेन्यू शेयरिंग की व्यवस्था हुई। इस नई व्यवस्था के बाद कंपनियों को अपने सालाना रेवेन्यू का 15% सरकार को देना होता था। इससे टेलीकॉम कंपनियों को फायदा हुआ, क्योंकि लाइसेंस फीस देना रेवेन्यू शेयरिंग के मुकाबले काफी महंगा हुआ करता था।
बीएसएन का गठन भी इसी सरकार ने किया : अटल सरकार में ही 15 सितंबर 2000 को भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) का गठन किया। इसके अलावा टेलीकॉम सेक्टर में होने वाले विवादों को सुलझाने के लिए 29 मई 2000 को टेलीकॉम डिस्प्यूट सेटलमेंट अपीलेट ट्रिब्यूनल (TDSAT) को भी गठन किया।
अटलजी ने अपने 5 साल के कार्यकाल में कई बड़े फैसले लेकर दुनिया को चौंका दिया। चाहे दुनिया को चकमा देकर पोखरण में परमाणु परीक्षण करने का फैसला हो या फिर अमेरिका की चेतावनी के बाद भी कारगिल में पाकिस्तानी सेना पर हमला। अटलजी ने अपने फैसलों से दुनिया को नए भारत की तसवीर दिखा दी थी। इन्हीं फैसलों में से एक था नई टेलीकॉम पॉलिसी लागू करना। इसकी वजह से देश में संचार क्रांति आ गई और ये ऐसा फैसला था जिसने भारत के टेलीकॉम सेक्टर की तसवीर बदलकर रख दी। आज हम उसी टेलीकॉम पॉलिसी के बारे में बताने जा रहे हैं।
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