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अपनी दुर्दशा पर आँसू बहा रहा जतारा का किला
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रिपोर्ट- पारसमणि अग्रवाल
अपने एक निजी कार्य से जतारा के प्रवेश द्वार से महज थोड़ी दूर निकलने पर गाड़ी से जतारा किले पर नजर गई और अचानक ही मन में किला का भ्रमण करने की अभिलाषा मन में जाग्रत हो गई। निजी कार्य से वक्त मिलते ही मेरे कदमो ने किले की ओर रुख कर लिया और लगभग 14- 15 फिट ऊँचे पर मार्ग पर पहुँच अपनी मंजिल को अपने सामने पाया। मंजिल को अपने सामने देख मन में एक अजीब सा उत्साह उमड़ आया और विशालकाय किला को अपनी नजरों में कैद किया। किले को काफी उत्सुकता के साथ देखते हुये मानो यह लग रहा था कि किला अपनी दुर्दशा पर आँसू बहा अपनी किस्मत को कोश रहा हो। यदि पर्यटक नजरिये से इस किला को देखा जाये तो पर्यटक स्थल के रूप में विकसित होने की अपार सम्भावना दिखाई दे रही थी क्योंकि किले का विशाल रूप ही अपने आप एक विशेष महत्व रखता है किले के जस्ट बगल में बना विशाल तालाब जिसका दूसरे पार का किनारा नजर ही नहीँ आ रहा था इसी से तालाब के आकार का अंदाजा लगाया जा सकता है यह तालाब किले की शोभा पर चार चाँद लगाने का कार्य कर रहा था वर्तमान में उक्त तालाब में मत्स्य पालन का कार्य जोरों शोरों से होता दिखाई दिये। भयाभय किले में एक अजीब उत्साह के साथ साथ अजीब सा डर लिये हम उस कोठरी तक भी जा पहुँचे जँहा बैठकर तालाब के साथ प्रकृति के सुनहरे नजारे का दीदार किया जा सकता है उक्त स्थल को देख ऐसा लग रहा था कि राजा अपनी रानी के साथ वही बैठकर प्रकृति की महिमा का आनन्द लिया करते थे पर्यटन की अपार सम्भावनाये छिपाये यह किला बदहाली की मार झेलते हुये अपना अस्तित्व बचाने के लिये संघर्ष कर रहा है पुरात्व विभाग की अनदेखी और स्थानीय प्रशासन के गैर जिम्मेदारी पूर्ण रवैया किले को जमीदोज होने को मजबूर हो रहा है किले के भ्रमण में हमें ऐसी भी कई जगह नजर आई जो रख रखाव के आभाव में अपनी पहचान खो चुकी थी । भविष्य की इमारत अतीत की नींव पर ही बनती है इस महत्वपूर्ण कहावत को इस किले से जोड़कर देखने पर मै खुद को इस निष्कर्ष पर खड़ा पाता हूँ कि यदि पुरात्व विभाग द्वारा वैज्ञानिक पद्धति से इस किले का रखरखाव होने व स्थानीय प्रशासन के पहल से जतारा को पर्यटक नगर के रूप में विकसित किया जा सकता था जिससे जतारा का चहुँमुखी विकास होने के साथ-साथ स्थानीय लोगों को रोजगार के संसाधन भी मुहैय्या हो जाता । वही जतारा से महज लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद ओरछा भी इस नगर के लिये संजीवनी बूटी का कार्य करता हुआ दिखाई देता क्योंकि दूर - दूर से पर्यटक ओरछा की सैर करने आते है और यदि जतारा भी पर्यटक नगर के रूप में विकसित हो जाता तो ऐसे में वह खुद को ओरछा से महज कुछ दूरी पर मौजूद किले का विचरण करने से खुद को नहीँ रोक पाते परिणाम स्वरुप पर्यटक नगर जतारा पर्यटकों के लिये भी मोहताज नहीँ होता लेकिन दुर्भाग्य जतारा का और बदकिस्मती उस किले की जिसमें पर्यटकों का मेला लगना चाहिये था उस किले में बुलन्द हौसले के साथ अतिक्रमण का जाल फैला हुआ है। खण्डर में तब्दील हो रहे उस किले के ग्राउंड फ्लोर पर अतिक्रमणकारियों द्वारा भैस बांधकर और खेती का निजी सामान रख बड़े पैमाने पर अतिक्रमण किया गया है और स्थानीय प्रशासन कुम्भकर्णीय नींद में सोने में मस्त है। किले के ऊपरी फ्लोरो पर जानने पर वहाँ की दशा देख यह एहसास हुआ कि जैसे वीरान पड़े उस किले में वर्षों से कोई गया ही नहीँ हो जो पुरात्व विभाग के उसके प्रति नज़रिये को स्पष्ट बया करता है। अब देखना यह है कि पुरात्व विभाग और स्थानीय प्रशासन अपनी नींद से जागकर अपने अतीत की रक्षा करता है या फिर बढ़ते समय के काल चक्र के साथ इस किला का भी नामोनिशान मिट जायेगा।
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जतारा के किले को देखकर मन के साहित्यिक उपवन में उपजी रचनाये
खण्डर की ईंट कुछ कहती है।
सहमी-सहमी सी रहती है।
कोस कर अपनी किस्मत को
आँख से जल की धार बहती है।
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