माँ भवानी के जयकारों की पाँचवें दिन गूंज


उरई○ हिन्दू धर्म में नवरात्र की विशेष मान्यता है
शहर में जगह-जगह माँ भवानी के पण्डाल भारे जिधर देखो उधर ही माँ भवानी की भजन संध्या, अरती जय जय कारो गूंज सुनाई दे रही है शहर तो शहर गाँवों में भी माँ के पण्डाल भरे हैं ऐसा ही कुछ रामपुरा थाना क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम-टीहर में कार्यक्रम को सुन्दर रूप देने वाले संयोजक- अनुराग गुप्ता अध्यक्ष- आशीष शुक्ला(कल्लू), मोहन सिंह, जे पी सक्सेना, शहीद खान, सुनील गुप्ता(जोनी) लूली सिकरवार, अन्शू दीक्षित, राहुल जादौन, अमन, आलोक, पंकज, छोटू, सतीश, उमाशंकर आदि।
युवाओ के दौरान नवरात्रि के पांचवें दिन देवी की पूजा-अर्चना की गयी।जिस देवी की झांकी को सुन्दर रूप दिया कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है।इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है।इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।शास्त्रों में इसका पुष्कल महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है।अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं। पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं दैवी शक्ति हैं स्कंदमाता।
सिंपहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

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