अयोध्या में राम मंदिर!



अयोध्या में रविवार को विहिप की धर्मसभा हुई। इससे ठीक पहले यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भगवान राम की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने की घोषणा की। पीएम नरेंद्र मोदी ने राजस्थान में चुनावी सभा में आरोप लगाया कि कांग्रेस जजों को डरा रही है। क्या सारी रणनीति 2018 को 1992 बनाने की है? हालांकि, 36 साल में बदले समीकरणों के कारण ऐसा होना संभव नहीं दिख रहा। 

1992 में परिस्थितियां भाजपा के अनुकूल थीं। अस्सी के दशक के अंत में लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई में भाजपा ने विहिप से राम मंदिर आंदोलन की कमान ली थी। फिर 1990 में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चली। इसके बाद यूपी में तत्कालीन मुख्य विपक्षी दल सपा, बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के चुनौती भरे बयानों ने आंदोलन को खाद पानी दिया। तब तक भाजपा ने भले ही यूपी में सत्ता का स्वाद चख लिया था, लेकिन केंद्र की सत्ता उसके लिए बहुत दूर थी। तब आडवाणी के नेतृत्व में हुए आंदोलन को देश के चारों शंकराचार्य का समर्थन था। 36 साल बाद आंदोलन की कमान फिर विहिप के हाथों में है, तो शिवसेना ने धर्मसभा से पहले अयोध्या में दस्तक देकर माहौल में दूसरा रंग भर दिया है। 1992 की तुलना में सपा-बसपा के नेता संयत बयान दे रहे हैं। कांग्रेस ने नरम हिंदुत्व का चोला पहनकर दूरी बना ली है। मुस्लिम समुदाय ने चुप्पी साध रखी है।

भाजपा 1992 के बाद उत्तर प्रदेश के अलावा केंद्र में भी करीब 11 साल सत्ता में बिता चुकी है। ऐसे में भाजपा आंदोलन का सीधा लाभ उठाने की स्थिति में नहीं दिख रही। कभी राम मंदिर आंदोलन के अगुआ रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मौजूदा स्थिति पर टिप्पणी से इनकार कर दिया। उनके कार्यालय से कहा गया कि उनका इस मुद्दे पर बोलने का सवाल ही नहीं है। 

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