क्या सोचती हैं लड़कियां सेक्स के बारे में?






शादी के बाद सेक्‍स लाइफ पर ये सोचती हैं लड़कियां? 

भारत की एक बड़ी आबादी मानती है कि विवाह एक संस्कार है, तो इस देश में एक ऐसा तबका भी है, जो कहता है कि विवाह सेक्स का लाइसेंस है। इस नजरिये से समस्याएं जन्म लेती हैं। जो लोग विवाह को संस्कार मानते हैं। उनके लिए शादी के बाद बनाए जाने वाले शारीरिक संबंध वैवाहिक जीवन के लिए जरूरी हैं, जो सही भी है। दूसरा नजरिया जो कहता है कि विवाह सेक्स का लाइसेंस है। उसके लिए विवाह कर लार्इ स्त्री केवल भोग विलास का साधन है, जो उसको अपनी मर्जी के अनुसार इस्तेमाल करता है।
मैं इस विषय पर लिखना चाहता था, मगर सोच रहा था कि अपनी बात को किस तरह बोतल में उतारूं। आज सुबह टहलते-टहलते मेरे हाथ में निखिल सचान की किताब नमक स्वादानुसार आर्इ। मैंने किताब को बीच में से यूं ही खोला तो सामने कहानी थी 'सुहागरात'। समय कम था, इसलिए अंत पर पहुंचना शुरू किया तो युवा कहानीकार का अंत काफी कुछ कहता था, जिसका उल्लेख करते हुए मैं अपनी बात को आगे बढ़ाऊं। सचान लिखते हैं, 'इंसान केवल एक जानवर है, जिसमें नर मादा आज तक एक दूसरे को समझ नहीं पाए हैं, बाकी सभी जानवरों में नर अपनी मादा के मर्म को बेहतर जान समझ पाया है।

इंसान के अलावा दुनिया के सारे जानवरों में नर मादा से ज्यादा खूबसूरत होता है, चाहे वो नाजुक से पंछियों में मोर हो या फिर शक्तिशाली शेर हो, सभी अपनी मादा को लुभाने के लिए घंटों तरह-तरह का करतब और नाच दिखाते हैं, और अगर उसके बाद भी मादा उनका न्यौता स्वीकार न करे तो वो चुपचाप अपने अपने पंख, पूंछ, हरकतें संभालकर शालीनता से वापस चले जाते हैं।
इंसान अकेला ऐसा जानवर है, जो मादा को अपनी बपौती समझता है। कहानीकार स्वयं एक पुरुष है, इसलिए सभी पुरुषों को एक कटघरे में लाकर खड़ा भी नहीं किया जा सकता, जैसे तनु वेड्स मनु में नायक मनु पागलखाने में अपनी पत्नी से कहता है कि पिछले 5000 सालों से हो रहे महिलाओं पर अत्याचारों का जिम्मेदार क्या मैं अकेला ही हूं।
भारत में अधिकतर पुरुष निखिल सचान की कहानी के अंत में कहे हुए वाक्यों जैसे होते हैं। यकीनन उनको लगता है कि औरत उनके अनुसार चले, जिसको वो धूमधाम से विवाह कर लाएं हैं। मगर, क्या इसके लिए केवल पुरुष जिम्मेदार हैं। बिलकुल नहीं, इसलिए पूरा समाज जिम्मेदार हैं, जिनमें औरतें भी शामिल हैं। काफी महीने पहले की बात है, मैं एक 27 वर्षीय लड़की से बात कर रहा था, जो शादीशुदा थी, लेकिन उनका विवाहित जीवन टूटने की कगार पर पहुंचा हुआ था। मैंने उससे सेक्स लाइफ के बारे में पूछा तो पता चला कि उसको नहीं पता कि उससे वैवाहिक बलात्कार हो रहा है।
वे सोचती थी, जैसे उसका पति उसके साथ संबंध बनाता है, वो शायद विवाह को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं, और हर विवाह में ऐसा होता है। उसका पति उससे शारीरिक संबंध बनाता, वो इंकार भी नहीं करती थी, मगर, इसमें दोनों में आत्मीयता खत्म हो रही थी, जो वैवाहिक रिश्ते के लिए सबसे घातक चीज होती है।
आप कब तक किसी से बिना हूं हूं के बात कर सकते हैं। यह तो केवल एक लड़की की बात या इस देश में हर दूसरी या तीसरी लड़की की यही कहानी होगी, क्योंकि हमने लड़कियों के साथ सेक्स पर बात ही नहीं की, हमने केवल को रसोर्इ सिखार्इ, उनको परिवार संभलना सिखाया, उनको बच्चे पैदा कर कुल आगे बढ़ाने का पाठ सिखाया। जबकि दूसरी तरफ लड़कों को चौराहे दिए, अश्लीलता देखने की आजादी दी।
टेलीविजन पर किसिंग सीन आते हैं, तो हम सब नजर चुरा लेते हैं। गलती महसूस करते हैं। लड़कों को यह देखने के लिए सिनेमा हॉल बना दिए, होस्टेलों में अर्धनग्न अभिनेत्रियों के पोस्टर चिपका दिए। इस तरह के वातावरण में आप वैवाहिक बलात्कार को लेकर चर्चा कर रहे हैं। अगर, मामले में खुलकर सामने आने लग जाएं तो वैवाहिक रिश्ते चंदों में खत्म हो जाएंगे।
एक लड़की जो अपनी माता या बहन के साथ अपने बैडरूम की चर्चा नहीं करती, आप सोचते हैं, वो खुलकर कोर्ट कचहरी में आए, अपने पति को जेल की सलाखों के पीछे भेज दे। सवाल तो यह है कि वो लड़की पति को जेल भेजने के बाद स्वयं कहां रहेगी ? क्या उसका ससुराल उसको अपनाएगा ? क्या मायके वाले उसको रख पाएंगे? जो छोटी-छोटी बातों पर लड़की को ससुराल यह कह कर भेजते हैं कि लड़कियों को एडजस्ट करना पड़ता है। ऐसे में वो मनोबल कहां से लाएगी लड़की, जो वैवाहिक बलात्कार को उजागर करे।
अगर कुछ परिवर्तन चाहते हैं, तो समाज में जागरूकता लाने की जरूरत है। नर्इ रिपोर्ट के अनुसार आज लड़कियों में पॉर्न का क्रेज बढ़ रहा है। क्यों? क्योंकि जो चीजें कल तक लड़कों के हाथ में थी, वो लड़कियों के हाथ में पहुंच चुकी हैं। यदि ग्रामीण या छोटे कस्बों की बात को छोड़ दूं। कुछ दिन पहले एक मित्र मिला, जो कोर्ट में काम करता है, उसने कहा आजकल पंजाब में तलाक के केस बहुत आ रहे हैं, मगर, दिलचस्प बात तो यह है कि लड़कियों ने तलाक की मांग इसलिए की है कि उनके पति उनको शारीरिक संबंधों को सुख देने से चूक रहे हैं।
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अब जब समाज बदल रहा है, तो वैवाहिक बलात्कार जैसी अवधारणा के लिए बिल लाने या कानून बनाने की जरूरत नहीं, बल्कि जरूरत है, सेक्स एजुकेशन की। मगर, सवाल यह है कि यह शिक्षा कहां से ली जाए। विशेषकर उस देश में जहां एक शिक्षक अपनी छात्रा से रेप कर देता है। यदि कोर्इ गरीब अपनी बेटी के बीमार होने पर डॉक्‍टर के पास लेकर जाता है, तो इलाज के बहाने डॉक्‍टर उसके साथ रेप कर देता है। हाल में, गुजरात हार्इकोर्ट ने गुजरात के साबरकांठा जिले की रहने वाली एक चौदह वर्षीय लड़की को गर्भ गिराने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि उसको 24 सप्ताह हो चुके हैं। इस बच्ची का कसूर इतना था कि वह डॉक्‍टर के पास अपना इलाज करवाने के लिए गर्इ थी।
वैवाहिक रिश्ता सेक्स का लाइसेंस है, जैसी अवधारणा को बदलने की जरूरत है। इस अवधारणा को जन्म देने वाला समाज ही इसको बदल सकता है। हम आज उस दौर में जी रहे हैं, जहां पर सब कुछ खुलेआम उपलब्ध है। क्यों हमारे बच्चे किसी गलत जगह से जानकारियां उठाएं? क्यों हम 21 सदी में पहुंचने के बाद भी अपनी पुरानी सोच को नहीं बदल पा रहे ?
निरुशा निख़त मुंबई की एक जानी-मानी फ़ैशन डिज़ाइनर हैं, जो लंबे समय तक लिविंग रिलेशन में रहीं एवं उन्‍हें लगा कि उनका संबंध लंबे समय तक नहीं टिकेगा, और उस समय वो गर्भवती भी थी, उसने अपना बच्चा गिराने से मना कर दिया एवं बिन ब्याही मां बनने का कठोर फैसला लिया। यदि कुछ संबंध पीड़ा देते हैं, उनसे किनारा कर लेना बेहतर है, कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने से।
वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा को जन्म देने से अच्छा होगा कि हम समाज को जागरूक करें। समाज में एक ऐसी अवधारणा को जन्म दें, जहां पर यौन संबंधों में भी सम्मान की भावना हो, दोहन की नहीं। हालांकि, यह इतना सरल कार्य नहीं है। हमारा अधिकतर जीवन सिनेमा के आसपास घूमता है, जो औरत को केवल कामुक बनाने में लगा हुआ है। सिनेमा का पूरा जोर होता है कि औरत को किस तरह कामुक बनाया  जा सके।
दरअसल, हम जो सारा दिन निगलते हैं, वो ही उगलते हैं। लड़कियों को पूरा ध्यान सजने संवरने पर है। पुरुषों का सारा ध्यान उन पर। वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा को जन्म देने के बाद यदि कानून आ जाता है तो पति देव क्या करेगा ? अवैध संबंधों की तरफ दौड़ेगा ? क्योंकि संतुष्टि तो कहीं न कहीं चाहिए होगी। वैवाहिक संबंधों में तनाव पनपेगा। परिवार की र्इकार्इ को चोट पहुंचेगी, जो समाज का निर्माण करती है। समाज एक राष्ट्र का। सवाल केवल वैवाहिक संबंधों को बचाने का नहीं, सवाल तो एक राष्ट्र को बचाने का है।
वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा को लेकर कानून बनाने से बेहतर है। जानवरों की तरह इंसानी नर को भी अपनी मादा का सम्मान करना चाहिए। यह सीखना होगी इसलिए जागरूकता फैलानी होगी।

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