बुढ़वा मंगल मनाना ज़रूरी क्या है विशेषता!

पवन पुत्र हनुमान और बुढ़वा मंगल जानें खासियत





बुढ़वा मंगल नाम म‍िला
बुढ़वा मंगल का संबंध रामायण काल से जुड़ा माना जाता है। मान्‍यता है कि‍ आज ही के द‍िन यानी क‍ि भाद्रपद के आख‍िरी मंगलवार को रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगाई थी। ज‍िसके बाद हनुमान जी ने अपना व‍िकराल रूप धारण क‍िया और रावण की लंका जलाने के ल‍िए अपनी पूंछ में बड़वानल (अग्रि) पैदा की थी। ज‍िससे इस माह के आख‍िरी मंगलवार को बुढ़वा मंगल नाम म‍िला। बतादें क‍ि इस दि‍न स‍ि‍र्फ लंका ही नहीं जली थी बल्‍क‍ि रावण के घमंड के चूर होने की शुरुआत हो गई थी। 
दूर हो जाएंगे सारे कष्‍ट
भाद्रपद माह के अंतिम मंगलवार को बुढ़वा मंगल मनाया जाता है। इस द‍िन भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले हनुमान जी के दर्शन करना शुभ माना जाता है। बुढ़वा मंगल पर हनुमान जी की व‍िध‍िवत पूजा करने से सारे कष्‍ट म‍िट जाते हैं। ब‍िगड़े हुए काम बन जाते हैं। इसके अलावा बजरंगबली, पवनपुत्र, अंजनी पुत्र जी के दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी हो जाती है। कहते हैं कि‍ आज के द‍िन बजरंग बली को स‍िंदूर चढ़ाना और उनके सामने बुढ़वानल स्त्रोत का पाठ करना लाभकारी होता है। 

25 द‍ि‍न बाद दशहरा
रावण के घमंड का अंत उसके वध के साथ हुआ था। दशानन, लंकेश जैसे नामों से जाने वाले रावण के बध को पूरे भारत वर्ष में व‍िजयदशमी या फ‍िर दशहरे के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। आज ही के द‍िन भगवान राम ने लंका को जीत कर सीता जी को बंधन मुक्‍त कराया था। ऐसे में इस बार लंका जलने यानी बुढ़वा मंगल के 25 दिन बाद रावण का वध होगा। ज‍िसे दशहरा के रूप में मनाया जाएगा। इस द‍िन पूरे देश में जगह-जगह रावण के पुतले दहन क‍िए जाते हैं।

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