जय कन्हैयालाल की -क्यों मनाते हैं जन्माष्टमी,जानिये बाल गोपाल के बारे में कई सारी बातें

तीज- त्यौहार 




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कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार करीब आ गया है और कृष्ण भक्तों ने जन्माष्टमी की तैयारी शुरू भी कर दी है. लेकिन कुछ लोगों में इस बात को लेकर उलझन में हैं कि कृष्ण जन्माष्टमी किस तारीख को मनाई जाएगी. 
कुछ लोगों को कहना है कि कृष्ण जन्माष्टमी 2 सितंबर को मनाई जाएगी वहीं कुछ 3 सितंबर को मनाने की बात कह रहे हैं.
हिन्दू पंचांग के अुनसार भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि को कृष्ण का जन्म हुआ था. इसलिए हर साल इसी तिथि पर और इसी नक्षत्र में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है. इस बार भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी रात्रि 8:47 बजे से शुरू होकर अगले दिन 3 सितंबर को रात्रि 8:04 बजे समाप्त हो जाएगा.
2 सितंबर को स्मार्त कृष्ण जन्माष्टमी मनाएंगे और 3 सितंबर को वैष्णवों के लिए कृष्ण जन्मोत्सव का त्योहार मनाया जाएगा.

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भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को मनाया जाता है| अष्टमी तिथि का महत्व इसलिये है क्योंकि वह वास्तविकता के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष स्वरूपों में सुन्दर संतुलन को दर्शाता है, प्रत्यक्ष भौतिक संसार और अप्रत्यक्ष आध्यात्मिक दायरे|
भगवान श्रीकृष्ण का अष्टमी तिथि के दिन जन्म होना यह दर्शाता है कि वे आध्यात्मिक और सांसारिक दुनिया में पूर्ण रूप से परिपूर्ण थे| वे एक महान शिक्षक और आध्यात्मिक प्रेरणा के अलावा उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ भी थे| एक तरफ वे योगेश्वर हैं (वह अवस्था जिसे प्रत्येक योगी हासिल करना चाहता है) और दूसरी ओर वे नटखट चोर भी हैं|
भगवान श्री कृष्ण का सबसे अद्भुत गुण यह है कि वे सभी संतों में सबसे श्रेष्ठ ओर पवित्र होने के बावजूद वे अत्यंत नटखट भी हैं| उनका स्वभाव दो छोरों का सबसे सुन्दर संतुलन है और शायद इसलिये भगवान श्री कृष्ण के व्यक्तित्व को समझ पाना बहुत ही कठिन है| अवधूत बाहरी दुनिया से अनजान है और सांसारिक पुरुष, राजनीतिज्ञ और एक राजा आध्यात्मिक दुनिया से अनजान है| लेकिन भगवान श्री कृष्ण दोनों द्वारकाधीश और योगेश्वर हैं|
भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा और ज्ञान हाल के समय के लिये सुसंगत हैं क्योंकि वे व्यक्ति को सांसारिक कायाकल्पो में फँसने नहीं देती और संसार से दूर होने भी नहीं देती| वे एक थके हुए और तनावग्रस्त व्यक्तित्व को पुनः प्रज्वलित करते हुये और अधिक केंद्रित और गतिशील बना देती है| भगवान श्री कृष्ण हमें भक्ति की शिक्षा कुशलता के साथ देते हैं| गोकुलाष्टमी का उत्सव मनाने का अर्थ है कि विरोधाभासी गुणों को लेकिन फिर भी सुसंगत गुणों को अपने जीवन में उतार के या धारण कर के प्रदर्शित करना|
जन्माष्टमी का उत्सव मनाने का सबसे प्रामाणिक तरीका यह है कि आप को यह जान लेना होगा कि आपको दो भूमिकाएं निभानी हैं| यह कि आप इस ग्रह के एक जिम्मेदार व्यक्ति हैं और उसी समय आपको यह एहसास करना होगा कि आप सभी घटनाओं से परे हैं और एक अछूते ब्रह्म हैं| जन्माष्टमी का उत्सव मनाने का वास्तविक महत्व अपने जीवन में अवधूत के कुछ अंश को धारण करना और जीवन को अधिक गतिशील बनाना होता है|

जन्माष्टमी निशीथ काल पूजन का समय: 2 सितंबर मध्यरात्रि 11:57 से 12:48 तक शुभ मुहूर्त है
गृहस्थ लोग 2 सितंबर को ही कृष्ण जन्माष्टमी 2018 व्रत करेंगे.
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हमारी प्राचीन कहानियों का सौंदर्य यह है कि वे कभी भी विशेष स्थान या विशेष समय पर नहीं बनाई गई हैं। रामायण या महाभारत प्राचीन काल में घटी घटनाएं मात्र नहीं हैं। ये हमारे जीवन में रोज घटती हैं। इन कहानियों का सार शाश्वत है।
श्री कृष्ण जन्म की कहानी का भी गूढ़ अर्थ है। इस कहानी में देवकी शरीर की प्रतीक हैं और वासुदेव जीवन शक्ति अर्थात प्राण के। जब शरीर प्राण धारण करता है, तो आनंद अर्थात श्री कृष्ण का जन्म होता है। लेकिन अहंकार (कंस) आनंद को खत्म करने का प्रयास करता है। यहाँ देवकी का भाई कंस यह दर्शाता है कि शरीर के साथ-साथ अहंकार का भी अस्तित्व होता है। एक प्रसन्न एवं आनंदचित्त व्यक्ति कभी किसी के लिए समस्याएं नहीं खड़ी करता है, परन्तु दुखी और भावनात्मक रूप से घायल व्यक्ति अक्सर दूसरों को घायल करते हैं, या उनकी राह में अवरोध पैदा करते हैं। जिस व्यक्ति को लगता है कि उसके साथ अन्याय हुआ है, वह अपने अहंकार के कारण दूसरों के साथ भी अन्यायपूर्ण व्यवहार करता है।
अहंकार का सबसे बड़ा शत्रु आनंद है। जहाँ आनंद और प्रेम है वहां अहंकार टिक नहीं सकता, उसे झुकना ही पड़ता है। समाज में एक बहुत ही उच्च स्थान पर विराजमान व्यक्ति को भी अपने छोटे बच्चे के सामने झुकना पड़ जाता है। जब बच्चा बीमार हो, तो कितना भी मजबूत व्यक्ति हो, वह थोडा असहाय महसूस करने ही लगता है। प्रेम, सादगी और आनंद के साथ सामना होने पर अहंकार स्वतः ही आसानी से ओझल होने लगता है । श्री कृष्ण आनंद के प्रतीक हैं, सादगी के सार हैं और प्रेम के स्रोत हैं।
कंस के द्वारा देवकी और वासुदेव को कारावास में डालना इस बात का सूचक है कि जब अहंकार बढ जाता है तब शरीर एक जेल की तरह हो जाता है। जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, जेल के पहरेदार सो गये थे। यहां पहरेदार वह इन्द्रियां है जो अहंकार की रक्षा कर रही हैं क्योंकि जब वह जागता है तो बहिर्मुखी हो जाता है। जब यह इन्द्रियां अंतर्मुखी होती हैं तब हमारे भीतर आंतरिक आनंद का उदय होता है।

श्री कृष्ण का दूसरा नाम "माखन चोर" - का अर्थ


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श्री कृष्ण माखनचोर के रूप में भी जाने जाते हैं। दूध पोषण का सार है और दूध का एक परिष्कृत रूप दही है। जब दही का मंथन होता है, तो मक्खन बनता है और ऊपर तैरता है। यह भारी नहीं बल्कि हल्का और पौष्टिक भी होता है। जब हमारी बुद्धि का मंथन होता है, तब यह मक्खन की तरह हो जाती है। तब मन में ज्ञान का उदय होता है, और व्यक्ति अपने स्व में स्थापित हो जाता है। दुनिया में रहकर भी वह अलिप्त रहता है, उसका मन दुनिया की बातों से / व्यवहार से निराश नहीं होता। माखनचोरी श्री कृष्ण प्रेम की महिमा के चित्रण का प्रतीक है। श्री कृष्ण का आकर्षण और कौशल इतना है कि वह सबसे संयमशील व्यक्ति का भी मन चुरा लेते हैं।


श्री कृष्ण के सिर पर मोर पंख का महत्व 

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एक राजा अपनी पूरी प्रजा के लिए ज़िम्मेदार होता है। वह ताज के रूप में इन जिम्मेदारियों का बोझ अपने सिर पर धारण करता है। लेकिन श्री कृष्ण अपनी सभी जिम्मेदारी बड़ी सहजता से पूरी करते हैं - एक खेल की तरह। जैसे किसी माँ को अपने बच्चों की देखभाल कभी बोझ नहीं लगती। श्री कृष्ण को भी अपनी जिम्मेदारियां बोझ नहीं लगतीं हैं और वे विविध रंगों भरी इन जिम्मेदारियों को बड़ी सहजता से एक मोरपंख (जो कि अत्यंत हल्का भी होता है) के रूप में अपने मुकुट पर धारण किये हुए हैं।
श्री कृष्ण हम सबके भीतर एक आकर्षक और आनंदमय धारा हैं। जब मन में कोई बेचैनी, चिंता या इच्छा न हो तब ही हम गहरा विश्राम पा सकते हैं और गहरे विश्राम में ही श्री कृष्ण का जन्म होता है।
यह समाज में खुशी की एक लहर लाने का समय है - यही जन्माष्टमी का संदेश है। गंभीरता के साथ आनंदपूर्ण बनें।


जन्माष्टमी पूजा विधि 

हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान विष्णु जी के पूर्णावतार को ही भगवान श्रीकृष्ण के रूप माना और उनकी पूजा  होती हैं। मान्यता है कि भगवान कृष्ण मानव जीवन के सभी चक्रों (यानि जन्म, मृत्यु, शोक, खुशी आदि) से गुजरे हैं, इसीलिए उन्हें पूर्णावतार कहा जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी (Janmashtami) तिथि को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। 

दही हांडी (Dahi Handi on Janmashtami)

भगवान कृष्ण बचपन से ही नटखट और शरारती थे। माखन उन्हें बेहद प्रिय था जिसे वह मटकी से चुरा कर खाते थे।  भगवान कृष्ण की इसी लीला को उनके जन्मोत्सव पर पुन: ताजा रचा जाता है। देश के कई भागों में इस दिन मटकी फोड़ने का कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है। जन्माष्टमी पर्व की पहचान बन चुकी दही-हांडी या मटकी फोड़ने की रस्म भक्तों के दिलों में भगवान श्रीकृष्ण की यादों को ताजा कर देती हैं। 

जन्माष्टमी पूजा विधि (Janmashtami​ Puja Vidhi)

जन्माष्टमी पर भक्तों को दिन भर उपवास रखना चाहिए और रात्रि के 11 बजे स्नान आदि से पवित्र हो कर घर के एकांत पवित्र कमरे में, पूर्व दिशा की ओर आम लकड़ी के सिंहासन पर, लाल वस्त्र बिछाकर, उस पर राधा-कृष्ण की तस्वीर स्थापित करना चाहिए, इसके बाद शास्त्रानुसार उन्हें विधि पूर्वक नंदलाल की पूजा करना चाहिए।
मान्यता है कि इस दिन जो श्रद्धा पूर्वक जन्माष्टमी के महात्म्य को पढ़ता और सुनता है, इस लोक में सारे सुखों को भोगकर वैकुण्ठ धाम को जाता है।
जन्माष्टमीव्रतरेसिपी
जन्माष्टमी के उपलक्ष्य पर भक्तगण श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए व्रत करते हैं। इस व्रत में फलाहार के साथ कुछ अन्य वस्तुओं का भी प्रयोग किया जा सकता है , जैसे दूध, दही, माखन, मावे आदि। इस दिन विशेष रूप से कुछ मीठा बनाने की परंपरा है। तो चलिए जानें किआप जन्माष्टमी पर क्या - क्या बना सकते हैं। इन व्यंजनों को बनाना आसान है और यह विशेष रूप से जन्माष्टमी व्रत के उपलक्ष्य में हैं।
माखन मिश्री भोग
यह सर्वविदित है कि कृष्ण जी को माखन कितना पसंदथा , आज बाजार में आपको माखन (जिसे अब मक्खन कहते है) आसानी से मिल जाएगा लेकिन उसमें वह शुद्धता नहीं होगी।इसलिए आइयें आज हम आपको माखन - मिश्री का भोग बनाना सिखाते हैं।
आवश्यकसामग्री
एककिलोमलाई
250 ग्राममिश्री
बनाने की विधि
जन्माष्टमी से कुछ दिन पहले ही प्रतिदिन दूध की मलाई निकाल - निकालकर अलग रख लें। इसे फ्रीज़ में स्टोर करके रखें। मलाईयुक्त दूध से आप दो बार मलाई निकाल सकते हैं।अब जन्माष्टमी के दिन सुबह एकब्लैंडरकीसहायतासेसारीक्रीमकोब्लैंडकरलें। इसे अच्छी तरह से ब्लैंड करें। जैसे ही यह अच्छी तरह से ब्लैंड हो जाए समझ लीजिएं आपका माखन तैयार है। अब इसमें मिश्री मिलाएं और भगवान कृष्ण को भोग लगाकर स्वयं ग्रहण करें। 
पंच मेवा पाग
  

आवश्यक सामग्री

मखाने - 1 कप
सूखा नारियल - 1 कप (कद्दूकस किया हुआ)
खरबूजे के बीज - 1 कप
चीनी - 2 कप (लगभग 500 ग्राम)
घी - ¾ कप (कम से कम 150 ग्राम)
बादाम और काजू - 50 ग्राम
गोंद - ⅓ कप (30 ग्राम)
खसखस - ¼ कप (30 ग्राम)
सफेद मिर्च - 1 छोटी चम्मच
इलाइची –एक चम्मच पावडर

मेवा पाग बनाने की विधि

सबसे पहले एक कड़ाही में घी गरम कर इसमें मखाने डालें। मखानों को गोल्डनब्राउन होने तक भूनते रहिएं। अब मखानों को एक प्लेट में निकाल लीजिए। मखानों का अतिरिक्त घी सोंखने के लिए आप प्लेट में टिश्यू पेपर रख सकते हैं।
अब इसी कड़ाही में गोंद को हल्के गर्म घी में तलिएं। गोंद को तलने के दौरान गैस धीमी रखें और इसे हिलाते रहें। कुछ देर बाद गैस हल्की सी तेज कर लीजिए ताकि गोंद ब्राउन हो सके। इसके बाद, गैस धीमी करके सिके हुए गोंद को एक प्लेट में निकाल लीजिए।
अब जो घी बचा हो उसमें ड्राई फ्रूट्स और खरबूजे के बीज को भी भून लीजिए। इन्हें लगातार चलाते हुए मध्यम आंच पर सेकना चाहिए। जब खरबूजे के बीज फूले हुए दिखने लगे तब इसमें कद्दूकस किया हुआ नारियल और खसखस डालें। सभी सामानों को मिलाते हुए 2 से 3 मिनट तक लगातार चलाते हुए कम आंच पर भूनिए।
अब आपको बनानी है चाशनी। इसके लिए कड़ाही में चीनी और ¾ कप पानी डाल दीजिए। जब चीनी इसमें पूरी तरह से घुल जाए और चाशनी तैयार हो जाए तो इसमें मेवे, भुने हुए बादाम, मखाने और गोंद भी कूटकर मिक्स कर दीजिए। इसके अलावा इसमें सफेद मिर्च का पावडर भी डालें। जब यह मिश्रण जमने की स्थिति में आ जाए तब गैस बंद कर दें।
अब मिश्रण को एक थाली में निकालें। थाली में पहले हल्का घी लगाने से बाद में यह आसानी से निकल जाता है। थाली में डालकर इसपर चाकू से काटने के निशान बना लीजिएं।
जब यह थोड़ा-सा ठंडा हो जाए तो इसे चाकू की सहायता से टुकड़े करके अलग कर लीजिएं। अगर यह थाली से आसानी से ना निकले तो थाली को नीचे की ओर से हल्का-सा गैस पर गरम कर लें।
लीजिएं आपके स्वादिष्ट मिक्सड्राईफ्रूटपाग खाने के लिए तैयार हैं। इन्हें किसी एयरटाइट कंटेनर में रख कर आराम से कई हफ्तों तक खा सकते हैं।
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