सत्तर सालों में कांग्रेस ने क्या क्या गलतियाँ की??? व्यापार के लिए टैक्स सिस्टम और बाकी पत्राचार इतने मुश्किल बना दिए कि व्यापारी अपने व्यापार में चाहे जितना माहिर हो वोह इसे नहीं समझ सकता .... व्यपार के लिए लाइसेंसिंग इतनी महंगी कर दी कि छोटा मोटा व्यापारी मैनुफैक्चरिंग के बजाय ट्रेडिंग को बेहतर समझने लगा..... कुल मिला जुला कर एक ऐसा गणित रचा गया ताकि जो पुराने व्यापारी हैं या नए पूंजीपति हैं, वही इस क्षेत्र में क़दम रख सकें .... चूंकि छोटे पूजीपतियों की मार्केट कभी कड़ी नहीं हो पायी इसलिए १००-५० बड़े पूंजीपतियों के हाथ पाँव दबाने के अलावा कोई और चारा बचा नहीं सरकारों के पास. अदालतों को चुस्त बनाने के लिए कोई क़दम नहीं उठाये गए.... न ही लेट होते हुए फैसलों पर कभी सरकारों ने ध्यान दिया, और नतीजा यह हुआ कि आज पेंडिंग केसेज़ की संख्या इतनी अधिक हो चुकी है कि इस प्रोजेक्ट में कोई हाथ लगाते भी डरे .... कानूनी जांच के समय आधुनिक तकनीकी के प्रयोग पर कभी कोई बल नहीं दिया, ज़मीने स्तर पर आज भी अगर साइबर जैसे क्राइम में आप फँस जाय तो आपको शायद ही साइबर समझने वाला कोई कानून का रखवाला मिले... यही हाल फोरेंसिक का भी रहा... तकनीकें ज़मीन पर आ ही नहीं पायीं कई कानूनी संशोधन जो अंग्रेजों के जाते ही हो जाने चाहिए थे, आज तक नहीं हो पाए धर्म को कंट्रोल में रखने के लिए कोई ख़ास कारगर उपाय नहीं किये.... धर्म को समाज पर हावी होते देखते रहा गया और रोकथाम नहीं की.... सिमी और जनसंघ के अलावा किसी भी धार्मिक संगठन के कान नहीं उमेठे गए हिंदी की राजनीति में साहित्य का सर्वनाश कर दिया गया..... बंगला, तमिल, तेलगु, मलयालम, कश्मीरी, कोंकणी, उर्दू, पंजाबी सभी उच्चतम दर्जे के साहित्य और साहित्यकारों को हाशिये पर छोड़ कुछ चापलूस अवसरवादी साहित्यिक दलालों को हिंदी के शिखर पर चमकाने की कोशिश की गयी, जिसका नतीजा यह हुआ के पूरा का पूरा भारतीय साहित्य टूट गया और आज दुनिया में हमारे साहित्य का कोई स्थान नहीं बचा... और भारत की रीडरशिप मरी सो अलग फिल्मों में सेंसरशिप के नाम पर हमेशा चाबुक पाने हाथ में रखी, इस वजह से इंडिपेंडेंट सिनेमा बनाने के लिए दसियों बार सोचना पड़ा फिल्म मेकर्स को.... उसका परिणाम यह रहा कि बोलीवुड की कम से कम पचास पचास फिल्में सेम स्टोरीलाइन पर बन्ने लगीं..... और विश्व फिल्म बाज़ार में भी भारत हाशिये पर ही पड़ा रहा ... उदारीकरण के बाद स्किल्ड लेबर बनाने के जो पाठ्यक्रम आये और स्किल्ड लेबर्स यानी अस्पताली डॉक्टर, आई टी इंजिनियर और तरह के MBAधारी की मार्किट खुली तो सरकार ने बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया कि इसकी अधिकता को रोका जाय और शिक्षा में गुणवत्ता का स्तर मेंटेन किया जाय.... नतीजा यह हुआ कि स्किल्ड लेबर समाज में रियल स्कोलर्स से बहुत ज्यादा ऊंचे उठ गए.... और शिक्षित समाज धीरे धीरे खोखला होता चला गया अमूल और लिज्जत जैसे उपक्रमो की सफलता के बाद भी उसकी तर्ज़ पर जिस स्तर पर सहकारी उद्योग प्रोमोट किये जाने चाहिए थे वोह नहीं किये गए.... और इसका फ़ायदा विदेशी कंपनियों ने खूब उठाया... आई टी उद्योग जिसने एक समय भारत को सबसे ज्यादा रोज़गार मुहय्या किया उसमे लेबर सप्लाई से आगे बढ़ने की कभी सोची ही नहीं गयी.... दुनिया के हर देश ने अपना कुछ न कुछ नया डेवेलोप किया लेकिन भारत सरकार ने न ही ऐसी कोई शुरुआत की और न ही जिन्होंने डेवेलोप किया था उन्हें कोई मदद दी.... नतीजा यह हुआ कि दस साल पहले शुरू हुए अधिकतर भारतीय आई टी स्टार्टअप या तो ख़त्म हो चुके हैं या तो जैसे तैसे सर्वाइव कर रहे हैं.... और आज सारे आईटी प्लेटफोर्म वेस्टर्न देशों के हैं, जिन्हें बनाते और चलाते हम भारतीय हैं जबकि मुनाफा उनकी जेबों में जाता है स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर दलालियाँ बढती रहीं... उपचार से लेकर दवाओं की बिक्री तक, डॉक्टर की गुणवत्ता गिरने से लेकर दवाओं की मैनुफैक्चरिंग तक, लेकिन सरकार मूक दर्शक बनी बैठी रही.... अगर कभी इस दिशा में कोई सुधार हुआ तो वोह कोर्ट के इंटरफ़ेयर का नतीजा रहा.... भारत में तुष्टिकरण और प्रतीकों की राजनीति इंट्रोड्यूस करवाई दंगो में दंगाइयों के खिलाफ या उसे भड़काने वाले नेताओं के खिलाफ कभी कोई सख्त कार्यवाही नहीं करवाई , जिसकी वजह से दंगे अपने आप में एक इंडस्ट्री बन कर खड़े हो चुके हैं आज मंदिर मस्जिद निर्माण को लेकर कभी भी सख्ती नहीं दिखाई, और नतीजा यह हुआ के हर गली मुहल्ले में मंदिर मस्जिद के नाम पर एक सेंसेटिव प्लेस क्रियेट हो गया सांसदों को कभी भी अपने क्षेत्र में काम करने को नहीं कहा गया, जिन्होंने काम नहीं किया उनसे पलट कर सवाल नहीं किया, सांसद निधियां वापस आती रहीं कोई जवाबदेही नहीं हुई, और सांसद और उनके अम्लों के निजी खर्च लगातार बढ़ाया जाता रहा वर्ल्डबैंक के लोन के लालच में किसानो पर जानबूझ कर ध्यान नहीं दिया गया, ताकि ज्यादा से ज्यादा पलायन हो और शहरों की आबादी दिखा कर उसे विकास बताया जा सके शायद लिखा जाय तो कई पेजों की किताब बन जाय, लेकिन यह पोस्ट केवल उन लोगों के लिए है जो पुराने कांग्रेसी थे और आज बहुत दुखी हैं.... मुझे भी नरेन्द्र मोदी बिलकुल पसंद नहीं हैं... क्यूंकि वोह सत्ता का दुरूपयोग कर रहे हैं, लेकिन इसकी नींव कांग्रेस की डाली हुई है.... मोदी जी केवल इन लूपहोल्स का फायदा उठा रहे हैं और बखूबी उठा रहे हैं..... जनता की तरह, मैं कल भी खुश नहीं था और आज भी दुखी हूँ.
हैदर रिज़वी
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