चिक्तसीय सहायता की कमी के कारण दिल्ली के शहिबाबाद स्टेशन पर ट्रैक मैन वीरेंद्र कुमार राजपूत की जन शताब्दी से टक्कर हो जाने के कारण मौत हो गई।
मूलरूप से रतनपुर कालोनी पनकी कानपुर निवासी ट्रैक मैन वीरेंद्र कुमार राजपूत बृहस्पतिवार सुबह शहिबाबाद स्टेशन पर ठेका कर्मचारियों से मैन्टीनेन्स करा रहे थे इसी दौरान गाज़ियाबाद से दिल्ली जा रही जन शताब्दी आ गई और वह ट्रेन की चपेट में आ गए। साथी कर्मचारी उन्हें अस्पताल ले कर गई पर रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई।
आरोप है की वीरेंद्र कुमार को ट्रेनिंग के महज 3 दिन ही हुए थे और उनको ट्रैक पर अकेले ही भेज दिया जाता है वो भी एक अतिव्यस्त ट्रैक पर; जबकि रेलवे के नियमानुसार इस काम के लिए कम से कम 45 दिन की ट्रेनिंग आवश्यक है और ऐसा ना होने पर कम से कम दो अनुभवी कर्मचारियों का साथ में जाना आवश्यक होता है। और इस विषय पर रेलवे ऑफिशियल्स का कहना है-"हम तो एक ही भेजते हैं!!!"
मृतक के छोटे भाई नरेंद्र राजपूत ने बताया की मजदूरी कर उनके पिता ने वीरेंद्र को पढ़ाया था। वीरेंद्र की शादी कानपुर के पास अकबरपुर में तय हो चुकी थी। शादी नवम्बर 2016 में होनी थी जिसे लेकर परिवार में तैयारियां चल रहीं थीं ।
मगर इस हादसे ने खुशियों को मातम में बदल दिया।।

गैरजिम्मेदाराना रेवेये की वजह से एक परिवार ने अपने जवान बेटे को खो दिया।
गौरतलब है की उनकी डेड बॉडी को भी एक छोटे लोडर में परिवार के सदष्यों के साथ दिल्ली से कानपुर भेज दिया गया।
प्रश्न ये है की एक रेलवे कर्मचारी की ऑन ड्यूटी मौत हो जाती है और उसकी लाश को जानवरों की तरह एक छोटे लोडर?? मे डाल कर परिवार के साथ भेज दिया गया।।।
और इस बीच रेलवे वेलफ़ेयर ऑफिसर का कहना है -"अब इतना किसको अंदाजा होता है मुआवजा दे तो रहा है रेलवे !!!"
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