भारत भुला चुका अमेरिका में सम्मान बरकरार


पटना। देश ने भले ही बिहार के आइंस्टीन को
गुमनामियों के अंधेरों में धकेल दिया हो, लेकिन
अमेरिका में विज्ञान का ज्ञान रखने वाले इनकी
पहचान से ख़ूब वाक़िफ़ हैं। देश को नई दिशा देने में
जितना योगदान सरकारों का है लगभग उतना ही
वैज्ञानिकों का भी रहा है। वशिष्ठ नारायण
सिंह ने कभी नहीं सोचा होगा कि इस भारत में
उन्हें दर-दर की ठोकरें खाकर दो जून की रोटी
नसीब होगी।
महान गणतिज्ञ हैं वशिष्ठ
बिहार के विज्ञान बहादुर वशिष्ठ नारायण सिंह
की गिनती दुनिया के महान गणतिज्ञों में होती
है। डॉ वशिष्ठ ने अमेरिका में ‘साइकिल वेक्टर स्पेश
थ्योरी’ पर शोध कर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी
ओर खींचा था। अमेरिका में आज भी इनके शोध
किए गए विषयों पर अध्यन होता है। देश भले डॉ.
वशिष्ठ को भुला चुका है लेकिन अमेरिका में इनका
सम्मान आज भी बरक़रार है।
भोजपुर में पैदा हुये वशिष्ठ बेहद ग़रीब परिवार से
ताल्लुक रखते हैं। मैट्रिक और साइंस कॉलेज से इंटर
की परीक्षा में वशिष्ठ नारायण ने पूरे बिहार में
टॉप किया था। पटना साइंस कॉलेज से पढ़ाई करने
के बाद 1965 में वे अमेरिका चले गये और
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की
डिग्री हासिल की। इसके बाद वशिष्ठ अमेरिकी
अंतरिक्ष रिसर्च एजेंसी नासा से जुड़ गए। नासा के
साथ इन्होंने 3 साल तक काम किया और उसके
बाद 1974 में भारत लौट आए।
वशिष्ठ को नासा ने कई लुभावने अवसर दिये,
लेकिन इन्होंने सब कुछ छोड़कर भारते आने का
फ़ैसला किया और शायद यही फ़ैसला इनके जीवन
का सबसे ग़लत फ़ैसला साबित हुआ। 1972 से 1977
तक आईआईटी कानपुर में अध्यापन के दौरान ये
सीजोफ्रेनियां रोग से ग्रसित हो गये और उन्हें
बीमार हालत में आरा लौटना पड़ा।
आज देश का महान वैज्ञानिक आरा की सड़कों पर
पागलों की तरह घूमता है। तब से लेकर आज तक केंद्र
और बिहार में कई सरकारें बदलीं, लेकिन इस महान
वैज्ञानिक की किसी ने कोई सुध नहीं ली।
वशिष्ठ नारायण वही वैज्ञानिक हैं जिन्होंने
आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत E=MC2 को
चुनौती दी थी।

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