एक दिन व्रज में एक संत आये,गोपी भी
कथा सुनने गई,संत कथा में कह रहे थे,भगवान के नाम
की बड़ी महिमा है,नाम से बड़े बड़े संकट भी टल जाते
है.नाम तो भव सागर से तारने वाला है,यदि भव
सागर से पार होना है तो भगवान का नाम कभी मत
छोडना.
कथा समाप्त हुई गोपी अगले दिन फिर दूध दही बेचने
चली, बीच में यमुना जी थी. गोपी को संत की बात
याद आई,संत ने कहा था भगवान का नाम तो
भवसागर से पार लगाने वाला है,जिस भगवान का
नाम भवसागर से पार लगा सकता है तो क्या उन्ही
भगवान का नाम मुझे इस साधारण सी नदी से पार
नहीं लगा सकता? ऐसा सोचकर गोपी ने मन में
भगवान के नाम का आश्रय लिया भोली भाली
गोपी यमुना जी की ओर आगे बढ़ गई.
अब जैसे ही यमुना जी में पैर रखा तो लगा मानो
जमीन पर चल रही है और ऐसे ही सारी नदी पार कर
गई,पार पहुँचकर बड़ी प्रसन्न हुई,और मन में सोचने लगी
कि संत ने तो ये तो बड़ा अच्छा तरीका बताया पार
जाने का,रोज-रोज नाविक को भी पैसे नहीं देने
पड़ेगे.
एक दिन गोपी ने सोचा कि संत ने मेरा इतना भला
किया मुझे उन्हें खाने पर बुलाना चाहिये,अगले दिन
गोपी जब दही बेचने गई,तब संत से घर में भोजन करने
को कहा संत तैयार हो गए,अब बीच में फिर यमुना
नदी आई.संत नाविक को बुलाने लगा तो गोपी
बोली बाबा नाविक को क्यों बुला रहे है.हम ऐसे
ही यमुना जी में चलेगे.
संत बोले - गोपी! कैसी बात करती हो,यमुना जी
को ऐसे ही कैसे पार करेगे ?
गोपी बोली - बाबा! आप ने ही तो रास्ता
बताया था,आपने कथा में कहा था कि भगवान के
नाम का आश्रय लेकर भवसागर से पार हो सकते है.
तो मैंने सोचा जब भव सागर से पार हो सकते है तो
यमुना जी से पार क्यों नहीं हो सकते? और मै ऐसा
ही करने लगी,इसलिए मुझे अब नाव की जरुरत नहीं
पड़ती.
संत को विश्वास नहीं हुआ बोले - गोपी तू ही पहले
चल! मै तुम्हारे पीछे पीछे आता हूँ,गोपी ने भगवान के
नाम का आश्रय लिया और जिस प्रकार रोज जाती
थी वैसे ही यमुना जी को पार कर गई.
अब जैसे ही संत ने यमुना जी में पैर रखा तो झपाक से
पानी में गिर गए,संत को बड़ा आश्चर्य,अब गोपी ने
जब देखा तो कि संत तो पानी में गिर गए है तब
गोपी वापस आई है और संत का हाथ पकड़कर जब
चली तो संत भी गोपी की भांति ही ऐसे चले जैसे
जमीन पर चल रहे हो.
संत तो गोपी के चरणों में गिर पड़े,और बोले - कि
गोपी तू धन्य है! वास्तव में तो सही अर्थो में नाम
का आश्रय तो तुमने लिया है और मै जिसने नाम की
महिमा बताई तो सही
पर स्वयं नाम का आश्रय नहीं लिया..
बोलो राधे
राधे ..
जय जय श्री राधे!!
कथा सुनने गई,संत कथा में कह रहे थे,भगवान के नाम
की बड़ी महिमा है,नाम से बड़े बड़े संकट भी टल जाते
है.नाम तो भव सागर से तारने वाला है,यदि भव
सागर से पार होना है तो भगवान का नाम कभी मत
छोडना.
कथा समाप्त हुई गोपी अगले दिन फिर दूध दही बेचने
चली, बीच में यमुना जी थी. गोपी को संत की बात
याद आई,संत ने कहा था भगवान का नाम तो
भवसागर से पार लगाने वाला है,जिस भगवान का
नाम भवसागर से पार लगा सकता है तो क्या उन्ही
भगवान का नाम मुझे इस साधारण सी नदी से पार
नहीं लगा सकता? ऐसा सोचकर गोपी ने मन में
भगवान के नाम का आश्रय लिया भोली भाली
गोपी यमुना जी की ओर आगे बढ़ गई.
अब जैसे ही यमुना जी में पैर रखा तो लगा मानो
जमीन पर चल रही है और ऐसे ही सारी नदी पार कर
गई,पार पहुँचकर बड़ी प्रसन्न हुई,और मन में सोचने लगी
कि संत ने तो ये तो बड़ा अच्छा तरीका बताया पार
जाने का,रोज-रोज नाविक को भी पैसे नहीं देने
पड़ेगे.
एक दिन गोपी ने सोचा कि संत ने मेरा इतना भला
किया मुझे उन्हें खाने पर बुलाना चाहिये,अगले दिन
गोपी जब दही बेचने गई,तब संत से घर में भोजन करने
को कहा संत तैयार हो गए,अब बीच में फिर यमुना
नदी आई.संत नाविक को बुलाने लगा तो गोपी
बोली बाबा नाविक को क्यों बुला रहे है.हम ऐसे
ही यमुना जी में चलेगे.
संत बोले - गोपी! कैसी बात करती हो,यमुना जी
को ऐसे ही कैसे पार करेगे ?
गोपी बोली - बाबा! आप ने ही तो रास्ता
बताया था,आपने कथा में कहा था कि भगवान के
नाम का आश्रय लेकर भवसागर से पार हो सकते है.
तो मैंने सोचा जब भव सागर से पार हो सकते है तो
यमुना जी से पार क्यों नहीं हो सकते? और मै ऐसा
ही करने लगी,इसलिए मुझे अब नाव की जरुरत नहीं
पड़ती.
संत को विश्वास नहीं हुआ बोले - गोपी तू ही पहले
चल! मै तुम्हारे पीछे पीछे आता हूँ,गोपी ने भगवान के
नाम का आश्रय लिया और जिस प्रकार रोज जाती
थी वैसे ही यमुना जी को पार कर गई.
अब जैसे ही संत ने यमुना जी में पैर रखा तो झपाक से
पानी में गिर गए,संत को बड़ा आश्चर्य,अब गोपी ने
जब देखा तो कि संत तो पानी में गिर गए है तब
गोपी वापस आई है और संत का हाथ पकड़कर जब
चली तो संत भी गोपी की भांति ही ऐसे चले जैसे
जमीन पर चल रहे हो.
संत तो गोपी के चरणों में गिर पड़े,और बोले - कि
गोपी तू धन्य है! वास्तव में तो सही अर्थो में नाम
का आश्रय तो तुमने लिया है और मै जिसने नाम की
महिमा बताई तो सही
पर स्वयं नाम का आश्रय नहीं लिया..
बोलो राधे
राधे ..
जय जय श्री राधे!!
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