विस़र्जन का कुचक़्र


गंगा जी के जगह तालाब मे विस़र्जन कई जीवों का अन्त का कारण हुआ लोगों का अभिलाषा व स्नेह मॉ को विदाई के साथ अगले साल का निमंत्रण भी रास नहिं आया लोगों ने एक कहावत कहि है कि जब जब होई ध़र्म की हानि तब तब मानव का क़र्म भी प्रभावित हुआ और उसका क़र्ज दूसरों ने हि चूकाया अब वेचारी मछलियों का क्या कसूर ....??? फिर भी दणड उन्ही को मिला !! हम और आप सब जिमेदार है उस जीव के जग से जाने को मजबूर करने का जो अदालत हम और हमारे लोगो के दवारा रछा हेतू बनाया गया उसका एक फैसला कई जीवों के प्राण पखेरू को सम़र्पण को नहिं क्या किसी ने सुध लेने मात्र कि भी इच्छा दिखाई मै कृष्णा पंडित अपने शब्दो के माधयम से यह जताना चाहता हँूकि जीव तो जीव है चाहे वह हम हो या कोई और सबको नि़र्मित करने मे भग्वान ने कितना हि सूझ बूझ का परिचायक का भाव बन सबको संसार का एक अलौकिक व संसारिक मूरत बना कर अलग अलग पहिचान दिया और सबके जीने का अधिकार भी तो समय रहते हमें अपने द़वारा किये गये नित्य क़र्म हि आने वाले कल का परिचायक के रूप मे खडा होगा ! और सत्य से हि क़र्म कि ऱछा होगी तो नि़र्णय के पहले एक सूझ बूझ हि स्तयता का मापन की स्वरूप होता है जरूर सोचें कृष्णा पंडित वाराणसी
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