पिता जी के घर आये थे गंगा जी जाते हुये आज प्रशासन के आगे बैठना हुआ १५ घटे चौराहा......
कोई आये और सूझ ले ले कि हमें भी भूख और प्यास लगती है आज मानव ने खुद हि कानून बना कर अपनी चली आ रही सदियों कि परम्परा को भी धात पहुचाया है और क्या कानून के सिपेहकार को इतना नही पता कि ये नियम कानून समाज के लिये हि बना है और जब हमारा समाज और लोग निरन्तर वहिं बात कर रहे है तो प्रशासन को भी ऑख खोल धरनारत व सभी को आस्था का ख्याल कर विश्वास को जिंदा रखा जाये ! ये काशी धरम कि पौराणविक व पवित्र नगरी जहॉ शिव के हि पुत्र गणेश को सड.क पर बैठाना मँहगा न पड जाये तो कहा गया है कि जब जब हौई धरम कि हानि तब तब नाश हमारे समाज कि ही हुई है मै कृष्णा पंडित अपने शब्दो के माध्यम से प्रशासन को Request करता हूँ कि काशी कि गरिमा व एकता अखण्डता हेतू सही फैसला कर आगे का काम सुनियोजित किया जाये.....किसी कि आस्था को चोट न पहूँचे और शॉती भंग ना हो.....
कृष्णा पंडित वाराणसी
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