मौत के बाद भी सुभाष को न्याय" मिल पाएगा या नहीं

मोटरसायकिल की चोरी में पकड़कर लाई थी, उसमें असली मामला रुपए की लेनदेन का था| माती कस्बे के एक कबाड़ी, मृतक युवक सुभाष राजवंशी का करीब पांच हजार रुपया चाहता था| मृतक कबाड़ी से कई बार बकाया रकम मांगने उसके पास गया| हर बार कबाड़ी बकाया रकम वापस देनें में आनाकानी करता रहा| गत दिवस फिर सुभाष कबाड़ी के पास अपना पैसा मांगने पहुंचा, उसने फिर देने से इंकार किया तो मौके पर मौजूद कबाड़ी की मोटरसायकिल लेकर सुभाष अपने घर चला आया| इधर कबाड़ी मोटरसायकिल चोरी की झूठी शिकायत लेकर देवा कोतवाली अंतर्गत माती चौकी जा पहुंचा| पुलिस ने कबाड़ी के शिकायती-पत्र को, ' बेरियर-चेक', समझ कर सुभाष के घर भुनाने जा पहुंची| घर पर मौजूद सुभाष को पुलिस अपराधी मानकर पकड़ लाई, मार-पिटाई की और लाकअप में बंद कर दिया| उसके कुछ ही देर बाद सुभाष की रहस्मय परिस्थितियों में मौत हो गई| पुलिस ने अपनी ... बचाने के लिए पटकथा फटाफट तैयार कर डाली व मौत को आत्महत्या प्रचारित कर डाला|
अब पुलिस की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा तो देखिए कि पोस्टमार्टम के बाद शव नियमत: परिवारीजनों को अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं सौंपा| परिणाम जनाक्रोश भड़का, पुलिस पिटी और पुलिस चौकी संवेदनहीनता की भेंट चढ़ गई| पुलिस भड़ास निकालने के लिए पास-पड़ोस के गांव-ग्रामीणों पर कहर बन कर टूट पड़ी, घर-गृहस्थी के समान चकनाचूर किए, नगदी जेवरात लूट लिए व जो मिला उसे पीट डाला| मित्र पुलिस का यह रूप देखकर यमराज भी मौके पर होता तो कांप जाता|
यहां सवाल यह है कि शिकायती-पत्र मिलने के बाद न्याय संगत कार्रवाई करने की जगह उसे 'बेरियर-चेक' क्यूं मान लेती है? इस प्रकरण में चोर का नामजद होना ही पुलिस के अक्ल का ताला क्यूं नहीं खोल पाया कि चोर भला कहीं नाम-पता बताकर चोरी करता है? पुलिस को आईपीसी-सीआरपीसी की कौन सी धारा आरोपित व्यक्ति पर जुल्म ढ़ाने की छूट देती है? देवा प्रकरण में संवेदन हीनता-दर संवेदनहीनता ने पुलिस को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है| आखिर में सवाल यह कि, " मौत के बाद भी सुभाष को न्याय" मिल पाएगा या नहीं?

By- Krishna Pandit (E & E NEWS)

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