तहसील कोंच में सूखा राहत घोटाला

* अब तक तकरीबन ग्यारह लाख रूपये बापिस आ चुके हैं बैंक में
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कोंच। तहसील में सूखा राहत घोटाला और कितना लंबा जाता यह तो फिलवक्त नहीं कहा जा सकता लेकिन अगर बैंक ने इस मामले में सजगता न दिखाई होती तो यह खेल और भी आगे तक जाता। भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य शाखा में एक चेक ऐसी आई जो निवर्तमान तहसीलदार दुर्गेश यादव के कोंच से रिलीव होने के बाद की तिथि में जारी की गई थी और इसी पर बैंक प्रशासन के कान खड़े हुये। बैंक प्रबंधन ने यह मामला जब तहसील प्रशासन के संज्ञान में डाला तो अधिकारियों के पैरों के तले की जमीन निकल गई और फिर शुरू हुई छानबीन जिसमें घोटाले की परत-दर-परत खुल कर सामने आने लगी। गिरफ्तार के भय से तमाम ऐसे खातेदार जिनके बैंक अकाउंट के मार्फत सरकारी धन की निकासी की गई थी, सामने आ रहे हैं और उक्त रकम लौटा रहे हैं, अब तक तकरीबन ग्यारह लाख रूपये की बापिसी हो भी चुकी है।

निवर्तमान तहसीलदार दुर्गेश यादव ने कोंच से 10 जुलाई को अपना कार्यभार छोड़ा था और नये तहसीलदार जितेन्द्रपाल ने उसी दिन यहां कार्यभार ग्रहण किया था। नये तहसीलदार के हस्ताक्षर भी बैंक में पहुंच चुके थे। चूंकि सूखा राहत का कार्य अभी भी चल ही रहा है और किसानों को मुआबजे की रकम का वितरण भी किया ही जा रहा है, सो बैंक में इस तरह के चेक रूटीन में आते रहते हैं और बैंक भी इस काम में उदारता पूर्वक उनके भुगतान करता जा रहा है। कहते हैं कि चोरों के पांव नहीं होते हैं, शायद यह उक्ति इस मामले में भी चरितार्थ हुई है। घोटाला माफिया यह भूल गया कि जिन तहसीलदार के हस्ताक्षर से वे बैंकों से रकम निकाल रहे हैं उनके तबादले के बाद नये हस्ताक्षर बैंकों में उसी दिन जा चुके हैं और यहीं वह चूक कर गये, उन्होंने 13 जुलाई की तारीख में चेक जारी कर दिया। जब यह चेक बैंक में पहुंचा तो बैंक प्रशासन को कुछ अंदेशा हुआ और एहतियात के तौर पर बैंक प्रबंधन ने इसकी सूचना तहसील पहुंचा दी। बस यह एक चेक ही इस समूचे घोटाले की गहराई नापने लगा। अधिकारियों को सांप सूंघ गया और फिर युद्घ स्तर छानबीन शुरू हो गई। अधिकारियों के होश यह देख कर उड़ गये कि यह मात्र एक-दो या चार-छह चेकों का नहीं है बल्कि कई महीनों से यह खेल चल रहा है। तहसील के मालखाने में चेकों का लेखाजोखा जब संभाला गया तो अधिकारियों के हाथों के तोते उड़ते दिखे, मालखाने से सौ-सौ की पूरी नौ चेकबुक यानी नौ सौ चेक गायब मिली।

 निवर्तमान तहसीलदार भी पसीना फेंकते हुये कोंच पहुंचे और उन्होंने शुरूआती साक्ष्यों के आधार पर दो लोगों पवन रायकवार व राकेश के खिलाफ 5 सितंबर को कोतवाली में एफआईआर दर्ज करा दी, इसके बाद एक सप्लीमेंट्री एफआईआर लेखपाल अभयसिंह की ओर भी तीन लोगों पवन रायकवार, राकेश व उमेशचंद्र पटेल के खिलाफ लिखाई गई। फिलहाल, मामले की गहन पड़ताल का काम जारी है। माना जा रहा है कि अगर बैंक इस मामले में गंभीरता से संज्ञान न लेता तो यह खेल अभी और भी लंबा जाता और घोटाले की रकम कई गुना बड़ा होती जाती।

इधर, कोतवाली में दर्ज एफआईआर के बाद जारी पुलिस कार्यवाही के भय से खातेदारों की लंबी लाइनें तहसील और बैंक में लगी हैं, इनका मकसद सिर्फ एक ही है कि किस तरह उनकी खाल बच सके। नतीजतन, अब तक ग्यारह लाख से भी अधिक की घोटाले की धनराशि उन खातों में जमा की जा चुकी है जिसकी निकासी चेकों की मार्फत की गई थी। इतनी बड़ी रकम सहज ही बापिस आने के बाद यह तो साफ है कि सरकारी धन की लूट का आंकड़ा तीस चालीस लाख के आसपास भी जा सकता है।
पारसमणि अग्रवाल

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