झूठ का पुलिंदा है पुलिसिया स्टोरी

-आवास-विकास चौकी पुलिस वा जितेंद्र सिंह मारपीट कांड
- जितेंद्र की मां ने कोतवाली पुलिस के पुलिसियां तांडव के खिलाफ एसपी को दिया शिकायती पत्र, कराया जिला चिकित्सालय में चिकित्सीय परीक्षण

बाराबंकी गुरूवार को मुकामी पुलिस से मारपीट के इल्जाम में जेल भेजे गए जितेंद्र सिंह की बूढ़ी माता ने आदर्श कोतवाली नगर पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए एसपी बाराबंकी को शिकायती पत्र देकर प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई की मांग की है| उन्होंने इस परिपेक्ष जिला चिकित्सालय में अपना वा पति सुरेंद्र सिंह का चिकित्सीय परीक्षण भी कराया है| आरोपी के परिवारीजनों के जुटाए गए साक्ष्यों की रौशनी में पुलिसिया कहानी झूठ का पुलिंदा साबित हो रही है| वहीं सुनील सिंह की कार्यशैली पर एक बार फिर प्रश्नचिन्ह लगा रही है|
कथित मारपीट पर पुलिस की कहानी पर ही गौर करें तो बड़ेल पुलिस द्वारा बुधवार की रात बारह बजे के बाद लखपेडाबाग निवासी चंद्रचूर्ण सिंह की पुत्री दीक्षा सिंह की शिकायत पर मारपीट, दहेज उत्पीड़न ( IPC की धारा 498, 452, 323, 504, 506, दहेज उत्पीड़न की धारा 3 वा 4) अंतर्गत रात्रि 03:20 बजे मामला पंजीकृत कराया जिसमें घटना रात्रि 12:30 बजे होना दिखाया| उसमें पति जितेंद्र सिंह, ससुर सुरेंद्र सिंह, पति के मित्र नारायण पाठक वा लखनऊ चिनहट थाने में दारोगा के पद पर तैनात चचेरे देवर रिंकज सिंह को आरोपित किया है| अब इसी के परिपेक्ष सुनील सिंह एसआई द्वारा दर्ज प्राथमिकी में साफ लिखा है कि 12/13 अगस्त की रात एक बजे करीब वैगनआर कार में चोटिल जितेंद्र सिंह और नारायण पाठक को उन्होंने देखा, जिन्होंने पुलिस से मारपीट की| मतलब यहां साथ में जितेंद्र के पिता की रात साढ़े बारह बजे लखपेडाबाग महर्षि के पास मारपीट में शामिल होना निराधार हुआ| साथ ही चचेरा भाई रिंकज सिंह मौका-ए-वारदात के समय चिनहट पर एनसीआर ड्यूटी पर बकायदा तैनात था, जिसकी पुष्टी जीडी रिकार्ड वा अन्य आधुनिक तरीकों से आसानी से हो सकता है| दूसरी सबसे अहम बात आरोपी के बुजुर्ग पिता के कथनानुसार कि जब पुलिसिया ताडंव कोठीडीह स्थित जितेंद्र सिंह के घर पर पुलिस वाले मचाए थे तब बडेल चौकी इंचार्ज गालियों की बौछार के बीच बारबार लखपेडाबाग ससुराल में मारपीट का हवाला दे रहा था| यानी पूरा पुलिसिया ड्रामा आरोपी के ससुरालियों द्वारा लेनदेन कर रचा होने की जितेंद्र के मां-बाप की शिकायत प्रथम दृष्टया सही मालूम पड़ती है|

जिसमें गौर करने वाली बात है कि फरवरी 2010 में ब्याही दीक्षा शादी के 10-15-10 दिन कर-करके कुल ढ़ाई महीना ही ससुराल में रही फिर वापस मैकें लौट आई और वापस नहीं गई| वहीं जितेंद्र के पिता सुरेंद्र ने पारिवारिक अदालत में नवबंर 2012 को रूखसती का बाद दायर किया जिसमें दीक्षा वा उसके घर वाले कई नोटिसों के बाद भी नहीं पहुंचे| वहीं अचानक पांच वर्ष बाद 26/06/2015 को दहेज उत्पीड़न में एक वाद दीक्षा सिंह की तरफ से दाखिल हुआ जिसमें जितेंद्र के वकील ने मामला पारिवारिक अदालत में होने का हवाला दिया| उसी पेशी के दौरान जितेंद्र के ससुरालियों द्वारा वकील से समझौते के लिए दबाव देकर कहा गया| साथ ही दीक्षा सिंह ने भी जितेंद्र के मित्र छोटू मिश्रा से मोबाइल पर जितेंद्र से बात करवाकर समझौते की पेशकश की| जिसपर जितेंद्र बीते एक माह से अपने ससुराल में ही रह रहा था| वहीं से रोज सुबह अपनी पत्नी दीक्षा सिंह को सफेदाबाद स्थित हिंद अस्पताल छोड़ते हुए देवा पलटा के निकट स्थित एक निजी कंपनी में रोजाना नौकरी करने जा रहा था | घटना वाले दिन उससे मिलने बचपन का परम मित्र फौज में सीमा पर तैनात नारायण पाठक आया, जब कहासुनी बढ़ने पर गुस्साकर जितेंद्र अपने मित्र के साथ अपने घर महीने भर बाद लौटा|

 दामाद के दोबारा नाराज होने पर ससुरालियों ने बडेल पुलिस के साथ मिलकर पूरा तामझाम रच डाला, ऐसा कहना जितेंद्र की माता अश्वनी पिता सुरेंद्र सहित आसपड़ोस वालों का है| साथ ही देखा जाए तो ड्यूटी पर तैनात सुनील सिंह के भी चोट के कहानीनुसा ीं मिलेंगे ना अन्य हमराही के, पर जितेंद्र वा उसके फौजी दोस्त सहित पूरा घर चोटिल जरूर नजर आ रहा है| वैसे भी हाल के दिनों में एसआई सुनील सिंह की कार्यशैली पर कई बार सवालिया निशान पूरे मामले में दाल पूरी काली होना दिखा रहा है| यानी आरोपी पर दो एफआईआर, एक मुकामी पुलिस वा एक ससुरालियों की तरफ से और वहीं जितेंद्र सिंह वा उसके घर वालों का सच ना पुलिस उच्चाधिकारियों ने जानना चाहा और ना ही चतुर्थ स्तंभ मीडिया के बने बैनरों ने......|

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