:ऐच्छिक ब्यूरो में सुनवाई के लिये सात मामले आये

सुखद अंजाम पर प्रकरण को पहुंचाने में ब्यूरो की क्षमता घटी

ब्यूरो के बुलावे की अवहेलना के मामले भी बढ़ने लगे

उरई। पुलिस लाइन में ऐच्छिक ब्यूरो की साप्ताहिक कार्रवाई में सात मामले जूरी के सामने सुनवाई के लिये प्रस्तुत किये गये। दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद सदस्यों ने आपस मंे बात करके उनके गिले शिकवे दूर कराने का प्रयास किया। हालांकि कई मामलों में एक पक्ष के अड़ जाने से ऐच्छिक ब्यूरो को अपने यहां मामला बंद कर दोनों पक्षों को अदालत की शरण लेने की हरी झण्डी दिखानी पड़ी।

ऐच्छिक ब्यूरो की कार्रवाई नगर उपाधीक्षक डा.जंग बहादुर सिंह की देखरेख में हुयी। न्यायपीठ के सदस्यों में अंजू शर्मा, पवन मिश्रा, अलका लाक्षाकार, डा.ममता स्वर्णकार आदि उपस्थित थे। ऐच्छिक ब्यूरो की प्रभारी रजनी मिश्रा ने एक-एक करके आज सुनवाई के लिये सूचीबद्ध सभी मामलों को उनके सामने पेश किया।

सदस्यों ने पहले हर मामले का सार समझा इसके बाद उन्होंने दोनों पक्षों से उनकी बातें सुनी और उन्हें सहमति के बिन्दु की ओर ले जाने का प्रयास किया। हर प्रकरण में लम्बी चर्चा हुयी। नतीजतन कुछ मामले हंसी खुशी से समझौते के रूप में निस्तारित हो गये। सीता पुत्री उदयराज निरंजन निवासी पटेल नगर उरई और अनूप निरंजन पुत्र राजेन्द्र सिंह निरंजन निवासी अकोढ़ी हाल मुकाम खत्री का बगीचा उरई के बीच दाम्पत्य विवाद का मामला बैठक में सबसे ज्यादा सरगर्म साबित हुआ। जिसकी वजह से आखिर ऐच्छिक ब्यूरों के सदस्यों ने हथियार डाल दिये। सीता देवी ने कहा कि वे दूसरे पक्ष के खिलाफ शादी के पूरे खर्च की वापिसी के लिये अदालत में मुकदमा दायर करेंगी। दो मामले ऐसे भी रहे जिनमें एक पक्ष अनुपस्थित रहा नतीजतन ब्यूरो को सुनवाई के लिये अगली तिथि नियत करनी पड़ी।

सुनवाई के लिये आये पक्षों ने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों की रूचि न लेने की वजह से ऐच्छिक ब्यूरो अब शोपीस बनता जा रहा है। कई प्रकरणों में बार-बार सूचना भेजी जाने के बावजूद एक पक्ष के न आने से मामलें लम्बे समय से बिलम्बित चल रहे हैं। उधर ऐच्छिक ब्यूरो में कोई सहमति न बन पाने के बाद जब एक पक्ष अदालत में जाने की घोषणा कर देता है तो प्रयास में विफलता के बावजूद ब्यूरो की विज्ञप्ति में मामला समझौता हो जाने की बात लिख दी जाती है। जिससे भ्रम उत्पन्न होता है। आज भी इस सिलसिले को दोहराया गया। जानकारों का कहना है कि अब वास्तविक रूप से ब्यूरो बहुत कम मामलों में दोनों पक्षों में सुलह करा पा रहा है। इससे ब्यूरो की उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है।

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