मोदी पहुंचे बोहरा समुदाय के पास।

दाऊदी बोहरा समुदाय के मौजूदा सर्वोच्च धर्मगुरू सैय्यदना मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन इन दिनों अपने मध्य प्रदेश प्रवास के तहत इंदौर में हैं. वे छह सितंबर को इंदौर पहुंचे थे और 25 सितंबर तक वहां रहेंगे.



इस दौरान वे मोहर्रम के मौक़े पर वाज़ (प्रवचन) फ़रमाएंगे. मध्य प्रदेश सरकार ने सैय्यदना को राजकीय अतिथि का दर्जा दिया है, लिहाज़ा स्थानीय प्रशासन और भाजपा शासित नगर निगम का पूरा अमला भी सैय्यदना की ख़िदमत में जुटा हुआ है.
चूंकि दो महीने बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होना है, लिहाज़ा ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सैय्यदना के 'दर्शन' के लिए शुक्रवार को इंदौर पहुंचे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को इंदौर में दाऊद के धर्मगुरु सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन से मुलाकात की। अपने संबोधन में मोदी ने बोहरा समाज की देशभक्ति की तारीफ करते हुए कहा कि इस समाज से उनका भी अटूट रिश्ता रहा है। 
बता दें कि दाऊदी बोहरा समुदाय के सैयदना 53वें धर्मगुरु हैं। उनके 12 सितंबर से इंदौर में धार्मिक प्रवचन चल रहे हैं। सैयदना पहली बार इंदौर आए हैं, इससे पहले उनका सूरत में आना हुआ था।






दाऊदी बोहरा मुख्यत: गुजरात के सूरत, अहमदाबाद, जामनगर, राजकोट, दाहोद, और महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे व नागपुर, राजस्थान के उदयपुर व भीलवाड़ा और मध्य प्रदेश के उज्जैन, इन्दौर, शाजापुर, जैसे शहरों और कोलकाता व चैन्नै में बसते हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, दुबई, ईराक, यमन व सऊदी अरब में भी उनकी अच्छी तादाद है। मुंबई में इनका पहला आगमन करीब ढाई सौ वर्ष पहले हुआ। यहां दाऊदी बोहरों की मुख्य बसाहट मुख्यत: भेंडी बाजार, मझगांव, क्राफर्ड मार्केट, भायखला, बांद्रा, सांताक्रुज और मरोल में है। यहां तक कि भेंडी बाजार, जहां बोहरों का बोलबाला है- बोहरी मोहल्ला ही कहलाने लगा है। फोर्ट की एक सड़क भी बोहरा बाजार के नाम से मशहूर है। 


-दाई-अल-मुतलक दाऊदी बोहरों का सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरु पद होता है। समाज के तमाम ट्रस्टों का सोल ट्रस्टी नाते उसका बड़ी कारोबारी व अन्य संपत्ति पर नियंत्रण होता हैं। इस समाज में मस्जिद, मुसाफिरखाने, दरगाह और कब्रिस्तान का नियंत्रण करने वाले सैफी फाउंडेशन, गंजे शहीदा ट्रस्ट, अंजुमन बुरहानी ट्रस्ट जैसे दर्जनों ट्रस्ट हैं। 150 छोटे ट्रस्टों को मिलाकर बनाया गया अकेला दावते हादिया प्रॉपर्टी ट्रस्ट ही 1000 करोड़ से उपर का बताया जाता है जो जमात के प्रशासन के लिए जिम्मेदार है। 
-दाऊदी बोहरा मुसलमानों की विरासत फातिमी इमामों से जुड़ी है जो पैगंबर मोहम्मद के प्रत्यक्ष वंशज हैं। 10वीं से 12वीं सदी के दौरान इस्लामी दुनिया के अधिकतर हिस्सों पर राज के दौरान ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य और वास्तु में उन्होंने जो उपलब्धियां हासिल कीं आज मानव सभ्यता की पूंजी हैं। इनमें एक है काहिरा में विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक ‘अल-अजहर’। भारत में उनका सबसे बड़ा शाहकार है भेंडी बाजार स्थित रूदाते ताहेरा जो 51वें दाई अल-मुतलक सैयदना डॉ. ताहिर सैफुद्दीन और उनके पुत्र 52वें दाई अल-मुतलक सैयदना डॉ. मोहम्मद बुरहानु्द्दीन का मकबरा है। संगमरमर का बना यह मकबरा 10 से 12वीं सदी के दौरान मिस्र में प्रचलित फातिमीदी वास्तु और भारतीय कला का अद्भभुत मिश्रण है। रूदाते ताहेरा की शान बढ़ाती है बेशकीमती जवाहरातों से जड़ी सुनहरे हर्फों वाली अल-कुरान। मुंबई की 20 से ज्यादा बोहरा मस्जिदों में कई शानदार हैं जिनमें सबसे बड़ी है 100 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी सैफी मस्जिद। 
-दाऊदी बोहरा इमामों को मानते हैं। उनके 21वें और अंतिम इमाम तैयब अबुल क़ासिम थे जिसके बाद 1132 से आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा शुरू हो गई जो दाई-अल- मुतलक कहलाते हैं। 52वें दाई-अल-मुतलक डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन थे। उनके निधन के बाद जनवरी 2014 से बेटे सैयदना डॉ. मुफद्दल सैफुद्दीन ने उनके उत्तराधिकारी के तौर पर 53वें दाई-अल-मुतलक के रूप में जिम्मेदारी संभाली है। 
-'बोहरा' गुजराती शब्द 'वहौराउ', अर्थात 'व्यापार' का अपभ्रंश है। वे मुस्ताली मत का हिस्सा हैं जो 11वीं शताब्दी में उत्तरी मिस्र से धर्म प्रचारकों के माध्यम से भारत में आया था। 1539 के बाद जब भारतीय समुदाय बड़ा हो गया तब यह मत अपना मुख्यालय यमन से भारत में सिद्धपुर ले आया। 1588 में दाऊद बिन कुतब शाह और सुलेमान के अनुयायियों के बीच विभाजन हो गया। आज सुलेमानियों के प्रमुख यमन में रहते हैं, जबकि सबसे अधिक संख्या में होने के कारण दाऊदी बोहराओं का मुख्यालय मुंबई में है। भारत में बोहरों की आबादी 20 लाख से ज्यादा बताई जाती है। इनमें 15 लाख दाऊदी बोहरा हैं। 




-दाऊद और सुलेमान के अनुयायियों में बंटे होने के बावजूद बोहरों के धार्मिक सिद्धांतों में खास सैद्धांतिक फर्क नहीं है। बोहरे सूफियों और मज़ारों पर खास विश्वास रखते हैं। सुन्नी बोहरा हनफ़ी इस्लामिक कानून पर अमल करते हैं, जबकि दाऊदी बोहरा समुदाय इस्माइली शिया समुदाय का उप-समुदाय है। यह अपनी प्राचीन परंपराओं से पूरी तरह जुड़ी कौम है, जिनमें सिर्फ अपने ही समाज में ही शादी करना शामिल है| कई हिंदू प्रथाओं को भी इनके रहन-सहन में देखा जा सकता है। लांकि वोटों के लिहाज़ से मध्य प्रदेश में बोहरा समुदाय की प्रभावी मौजूदगी महज़ तीन शहरों- इंदौर, उज्जैन और बुरहानपुर में ही है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस के लिए बोहरा समुदाय की अहमियत उनके वोटों से ज़्यादा सैय्यदना से चुनावी चंदे के रूप में मिलने वाले नोटों की है.
कहा जाता है कि सैय्यदना अपने अनुयायियों से विभिन्न रूपों में जुटाई गई धनराशि में से इन दोनों पार्टियों को मोटी रक़म चुनावी चंदे के रूप में देते रहे हैं इसीलिए दोनों प्रमुख दलों के शीर्ष नेतृत्व का सैय्यदना की ख़िदमत में पेश होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं है.
हालांकि सैय्यदना से पार्टियों को मिलने वाले चंदे का लेन-देन अघोषित तौर पर होता है. ख़ास बात यह है कि पहली बार कोई प्रधानमंत्री इस तरह बोहरा धर्मगुरू से मिलने पहुंचा. इससे पहले किसी प्रधानमंत्री ने सैय्यदना की ख़िदमत में इस तरह हाज़िरी नहीं बजाई.
अलबत्ता तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ज़रूर 1960 के दशक में गुजरात के सूरत शहर में दाऊदी बोहरा समुदाय के एक शिक्षा संस्थान का उद्घाटन करने गए थे, जहां 51वें सैय्यदना ताहिर सैफ़ुद्दीन से उनकी मुलाक़ात हुई थी. उस मुलाक़ात की तस्वीर को सैय्यदना और उनके निकटतम अनुयायी आज तक प्रचारित करते हैं.

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