वाराणसी स्पेशल कृष्णा पंडित के साथ

वाराणसी माहात्म्य
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वाराणसी – जिसे बनारस और काशी भी कहते हैं, भारत का सबसे पुराना और आध्यात्मिक शहर है। किसने रचा इस शहर को? क्या शिव खुद यहां रहते थे? क्या है इसका इतिहास? आइये जानते हैं इस संवाद के द्वारा वाराणसी की विशेषताएंप्रसून जोशी: सद्‌गुरु, युगों पहले से लोग बनारस के बारे में बात करते आ रहे हैं। इस शहर में आखिर ऐसा क्या खास है? कहा जाता है कि कुछ यंत्र और खास विचार को ध्यान में रखते हुए इस शहर का डिजाइन तैयार किया गया था। क्या आप बता सकते हैं कि इस शहर का निर्माण कैसे हुआ और इसका महत्व क्या है?सद्‌गुरु: यंत्र का मतलब है एक मशीन। मूल रूप से आज हम जो भी हैं – अपनी मौजूदा स्थिति को बेहतर बनाने के लिए ही हम कोई मशीन बनाते हैं या अब तक हमने इसी मकसद से मशीन बनाए बनाये हैं।हमने जो भी बनाया है, वह किसी न किसी रूप में इस धरती से ही लेकर बनाया है। जब आप इस धरती से कोई सामग्री लेते हैं, तो एक खास तरह की जड़ता उस मशीन में आ जाती है। जब हम किसी ऐसी मशीन के बारे में सोचते हैं जिसे हमेशा या काफी लंबे समय के लिए काम करना है, तो हम एक ऐसी मशीन बनाना चाहते हैं, जिसमें जड़ता की गुंजाइश न हो। हम एक ऊर्जा मशीन का निर्माण करने की कोशिश करते हैं। इसे ही परंपरागत रूप से यंत्र कहा जाता है। सामान्य त्रिकोण सबसे मूल यंत्र है। अलग-अलग स्तर की मशीनों को बनाने के लिए अलग-अलग तरह की व्यवस्था करनी पड़ती है। ये मशीनें आपकी भलाई के लिए काम करती हैं।

वाराणसी – एक यंत्र है यह शहर

तो यह काशी एक असाधारण यंत्र है। ऐसा यंत्र इससे पहले या फिर इसके बाद कभी नहीं बना। इस यंत्र का निर्माण एक ऐसे विशाल और भव्य मानव शरीर को बनाने के लिए किया गया,  जिसमें भौतिकता को अपने साथ लेकर चलने की मजबूरी न हो, शरीर को साथ लेकर चलने से आने वाली जड़ता न हो  और जो हमेशा सक्रिय रह सके। और जो सारी आध्यात्मिक प्रक्रिया को अपने आप में समा ले।काशी की रचना सौरमंडल की तरह की गई है, क्योंकि हमारा सौरमंडल कुम्हार के चाक की तरह है। इसमें एक खास तरीके से मंथन हो रहा है। यह घड़ा यानी मानव शरीर इसी मंथन से निकल कर आया है, इसलिए मानव शरीर सौरमंडल से जुड़ा हुआ है और ऐसा ही मंथन इस मानव शरीर में भी चल रहा है।सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी सूर्य के व्यास से 108 गुनी है। आपके अपने भीतर 114 चक्रों में से 112 आपके भौतिक शरीर में हैं, लेकिन जब कुछ करने की बात आती है, तो केवल 108 चक्रों का ही इस्तेमाल आप कर सकते हैं। अगर आप इन 108 चक्रों को विकसित कर लेंगे, तो बाकी के चार चक्र अपने आप ही विकसित हो जाएंगे। हम उन चक्रों पर काम नहीं करते। शरीर के 108 चक्रों को सक्रिय बनाने के लिए 108 तरह की योग प्रणालियां है।पूरे काशी यनी बनारस शहर की रचना इसी तरह की गई थी। यह पांच तत्वों से बना है, और आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि शिव के योगी और भूतेश्वर होने से,  उनका विशेष अंक पांच है।इसलिए इस स्थान की परिधि पांच कोश है। इसी तरह से उन्होंने सकेंद्रित कई सतहें बनाईं। यह आपको काशी की मूलभूत ज्यामिति बनावट दिखाता है। गंगा के किनारे यह शुरू होता है, और ये सकेंद्रित वृत परिक्रमा की व्याख्यां दिखा रहे हैं। सबसे बाहरी परिक्रमा की माप 168 मील है।यह शहर इसी तरह बना है और विश्वनाथ मंदिर इसी का एक छोटा सा रूप है। असली मंदिर की बनावट ऐसी ही है। यह बेहद जटिल है। इसका मूल रूप तो अब रहा ही नहीं।

वाराणसी को मानव शरीर की तरह बनाया गया था

यहां 72 हजार शक्ति स्थलों यानी मंदिरों का निर्माण किया गया। एक इंसान के शरीर में नाडिय़ों की संख्या भी इतनी ही होती है। इसलिए उन लोगों ने मंदिर बनाये, और आस-पास काफी सारे कोने बनाये – जिससे कि वे सब जुड़कर 72,000 हो जाएं। तो यह नाडिय़ों की संख्या के बराबर है। यह पूरी प्रक्रिया एक विशाल मानव शरीर के निर्माण की तरह थी। इस विशाल मानव शरीर का निर्माण ब्रह्मांड से संपर्क करने के लिए किया गया था। इस शहर के निर्माण की पूरी प्रक्रिया ऐसी है, मानो एक विशाल इंसानी शरीर एक वृहत ब्रह्मांडीय शरीर के संपर्क में आ रहा हो। काशी बनावट की दृष्टि से सूक्ष्म और व्यापक जगत के मिलन का एक शानदार प्रदर्शन है। कुल मिलाकर, एक शहर के रूप में एक यंत्र की रचना की गई है।रोशनी का एक दुर्ग बनाने के लिए, और ब्रह्मांड की संरचना से संपर्क के लिए, यहां एक सूक्ष्म ब्रह्मांड की रचना की गई। ब्रह्मांड और इस काशी रुपी सूक्ष्म ब्रह्मांड इन दोनों चीजों को आपस में जोडऩे के लिए 468 मंदिरों की स्थापना की गई। मूल मंदिरों में 54 शिव के हैं, और 54 शक्ति या देवी के हैं। अगर मानव शरीर को भी हम देंखे, तो उसमें आधा हिस्सा पिंगला है और आधा हिस्सा इड़ा। दायां भाग पुरुष का है और बायां भाग नारी का। यही वजह है कि शिव को अर्धनारीश्वर के रूप में भी दर्शाया जाता ह
ै – आधा हिस्सा नारी का और आधा पुरुष का।यहां 468 मंदिर बने, क्योंकि चंद्र कैलंडर के अनुसार साल में 13 महीने होते हैं, 13 महीने और 9 ग्रह, चार दिशाएं – इस तरह से तेरह, नौ और चार के गुणनफल के बराबर 468 मंदिर बनाए गए। आपके स्थूल शरीर का 72 फीसदी हिस्सा पानी है, 12 फीसदी पृथ्वी है, 6 फीसदी वायु है और 4 फीसदी अग्नि। बाकी का 6 फीसदी आकाश है। सभी योगिक प्रक्रियाओं का जन्म एक खास विज्ञान से हुआ है, जिसे भूत शुद्धि कहते हैं। इसका अर्थ है अपने भीतर मौजूद तत्वों को शुद्ध करना। अगर आप अपने मूल तत्वों पर कुछ अधिकार हासिल कर लें, तो अचानक से आपके साथ अद्भुत चीजें घटित होने लगेंगी। मैं आपको हजारों ऐसे लोग दिखा सकता हूं, जिन्होंने बस कुछ साधारण भूतशुद्धि प्रक्रियाएं करते हुए अपनी बीमारियों से मुक्ति पाई है। इसलिए इसके आधार पर इन मंदिरों का निर्माण किया गया। इस तरह भूत शुद्धि के आधार पर इस शहर की रचना हुई।यहां एक के बाद एक 468 मंदिरों में सप्तऋषि पूजा हुआ करती थी और इससे इतनी जबर्दस्त ऊर्जा पैदा होती थी, कि हर कोई इस जगह आने की इच्छा रखता था। भारत में जन्मे हर व्यक्ति का एक ही सपना होता था – काशी जाने का। यह जगह सिर्फ आध्यात्मिकता का ही नहीं, बल्कि संगीत, कला और शिल्प के अलावा व्यापार और शिक्षा का केंद्र भी बना। इस देश के महानतम ज्ञानी काशी के हैं। शहर ने देश को कई प्रखर बुद्धि और ज्ञान के धनी लोग दिए हैं।अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, ‘पश्चिमी और आधुनिक विज्ञान भारतीय गणित के आधार के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता था।’ यह गणित बनारस से ही आया। इस गणित का आधार यहां है। जिस तरीके से इस शहर रूपी यंत्र का निर्माण किया गया, वह बहुत सटीक था। ज्यामितीय बनावट और गणित की दृष्टि से यह अपने आप में इतना संपूर्ण है, कि हर व्यक्ति इस शहर में आना चाहता था। क्योंकि यह शहर अपने अन्दर अद्भुत ऊर्जा पैदा करता था।

वाराणसी का इतिहास

यह हमारी बदकिस्मती है कि हम उस समय नहीं थे जब काशी का गौरव काल था। हजारों सालों से दुनिया भर से लोग यहां आते रहे हैं। गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश यहीं दिया था।गौतम के बाद आने वाले चीनी यात्री ने कहा, ‘नालंदा विश्वविद्यालय काशी से निकलने वाली ज्ञान की एक छोटी सी बूंद है।’ और नालंदा विश्वविद्यालय को अब भी शिक्षा का सबसे महान स्थान माना जाता है। न सिर्फ उन दिनों में, बल्कि आज के विश्वविद्यालयों में भी कोई विश्वविद्यालय नालंदा जैसा नहीं है। नालंदा में लगभग 30,000 भिक्षु अध्ययन करते थे और 10,000 से अधिक शिक्षक थे। वहां हर तरह के विषय पढ़ाए जाते थे। यहां गणित अपने चरम पर पहुंचा। आपने जिन लोगों के बारे में सुना है – आर्यभट्ट और बाकी बहुत से लोग इसी क्षेत्र के थे। ये सब इसी संस्कृति से पैदा हुए थे जो काशी में जीवित थी।बुद्धि और क्षमता का यह स्तर काशी के कारण लोगों के जीवन में आया। काशी ने लोगों को उन आयामों से संपर्क करने में सक्षम बनाया, जो आम तौर पर एक इंसान को उपलब्ध नहीं होते। उन्होंने काशी को किसी तर्क संगत तरीके से नहीं बनाया। बल्कि उन्होंने अस्तित्व को उसी रूप में देखा, जैसा वह वास्तव में है, और फिर काशी की रचना की। सृजन की प्रकृति पर गौर करने के कारण, मानव बुद्धि ऐसे रूपों में विकसित हुई, जिसे कभी किसी ने संभव नहीं माना था।आज भी यह कहा जाता है कि ‘काशी जमीन पर नहीं है। वह शिव के त्रिशूल के ऊपर है।’ लोगों ने एक भौतिक संरचना बनाई, जिसने एक ऊर्जा संरचना को उत्पन्न किया। ऊर्जा संरचना जमीन पर नहीं होती, वह ऊपर मौजूद होती है। इसलिए कहा गया, ‘काशी जमीन पर नहीं है, वह जमीन के ऊपर है।’इसी वजह से यह पूरी परंपरा शुरू हुई। अगर आप काशी जाएं तो आप वहां से कहीं और नहीं जाना चाहते, क्योंकि जब आप ब्रह्मांडीय प्रकृति से संपर्क स्थापित कर लेते हैं, तो आप कहीं और क्यों जाना चाहेंगे?

भगवान शिव ने खुद ऊर्जा स्थापित की वाराणसी में

प्रसून:सद्‌गुरु, काशी आते ही सबसे पहले इस बात पर ध्यान जाता है कि यहां बहुत से मंदिर हैं। यहां पर बहुत, बहुत सारे मंदिर हैं। बहुत सारे। इतने सारे मंदिर क्यों? क्या इसकी वजह यह है कि यह बहुत से देवताओं का स्थान है? मुख्य रूप से इसे भगवान शिव के स्थान के रूप में जाना जाता है। लेकिन दूसरे मंदिरों की क्या वजह है, यहां पर बहुत से दूसरे मंदिर भी हैं। उनके बारे में और अधिक जान कर अच्छा लगेगा।मूर्ति विज्ञान के प्रमाणों के मुताबिक शिव के चित्र वाला सिक्का करीब 12,400 वर्ष पुराना है, जिसमें शिव सिद्धासन में बैठे हुए हैं और एक बैल उनके पास बैठा है। अगर बारह हजार चार सौ साल पहले लोगों ने सिक्के पर शिव का चित्र बनाया, तो इसका मतलब है कि वह उस समय तक देवता बन चुके थे। तो इसका मतलब है कि वह उससे भी कुछ हजार साल पहले रहे होंगे।काशी की गाथा का मूल सौ-फीसदी यही है कि शिव खुद यहां रहते थे। सर्दियों के समय काशी उनका निवास स्थान था। हिमालय के
उपरी हिस्सों में वे एक तपस्वी की तरह रहते थे, उन्हें वो जगह पसंद थी। उन्हें ठंड से कोई परेशानी नहीं थी। जब ठंड बहुत होती थी, तो वह श्मशान की राख अपने शरीर पर पोत लेते थे, जिससे उन्हें गर्मी मिलती थी। अगर ठंड और बढ़ जाती थी, तो वह एक हाथी को मार कर उसकी खाल को कंबल की तरह इस्तेमाल करते थे, वह खाल को पकाने की जरूरत भी नहीं समझते थे, बस उसी तरह ओढ़ लेते थे।लेकिन जब उनका विवाह एक राजकुमारी के साथ हो गया, तो फिर समझौते करने ही पड़े। और क्योंकि शिव एक शिष्ट व्यक्ति थे, उन्होंने समतल भूमि में जा कर रहने का निर्णय लिया। काशी उस समय का सबसे शानदार शहर था। इसलिए उन्होंने फैसला किया, कि वे अपनी नयी दुल्हन के साथ काशी के अलावा कहीं और रहने नहीं जाएंगे। और फिर वे काशी आ गए।उन्होंने कहा, ‘यही वह जगह है, यही मेरा निवास है,’ और उन्होंने खुद उस स्थान को ऊर्जा के एक शक्तिशाली केंद्र के रूप में स्थित किया ।

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