नए गवर्नर RBI के कौन हैं जानिए पूरी खबर पढ़ें!

नई दिल्ली 
आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव और फाइनैंस कमीशन के मौजूदा सदस्य शक्ति कांत दास को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) का नया गवर्नर चुना गया है। शक्तिकांत दास को पीएम नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है। नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक फैसलों का श्रेय भी काफी हद तक इन्हें ही दिया जाता है। 

आर्थिक मामलों के सचिव के रूप में 2015-17 के बीच दास ने केंद्रीय बैंक के साथ नजदीक से काम किया। इस समय वह G20 में सरकार के प्रतिनिधि भी है। 1980 बैच के तमिनाडु के आईएएस अधिकारी शक्तिकांत ने 2014 में राजस्व सचिव का पद संभाला था। नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद वह वित्त मंत्रालय में लाए गए पहले बड़े अधिकारी थे। यह संकेत था कि नरेंद्र मोदी को उनकी क्षमता पर बहुत भरोसा है। 

नोटबंदी और जीएसटी का संभाला जिम्मा 
आर्थिक मामलों के सचिव के रूप में नोटबंदी की प्लानिंग और फैसले को लागू करने में उनकी भूमिका अहम थी। नोटबंदी को लेकर सबसे अधिक सार्वजनिक बयान उन्होंने ही दिए। इससे माना गया कि नोटबंदी के मोर्चे पर आरबीआई नहीं सरकार आगे थी। अक्टूबर 2015 में दास आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में चुने गए। 

गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (GST) को लागू करने के पीछे भी उनका दिमाग था। मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद से ही वह जीएसटी को लागू करने पर जोर दे रहे थे। राजस्व सचिव के रूप में उन्होंने वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ करीब से काम किया। बाधाओं को दूर करने और कानून को ड्राफ्ट करने के लिए उन्होंने राज्यों के वित्त मंत्रियों की समिति के साथ भी काम किया। 

जब अड़े सरकार के सामने 
नई दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से मास्टर्स डिग्री लेने वाले दास को तमिलनाडु के सफल विशेष आर्थिक जोन और औद्योगिक नीति के लिए भी श्रेय दिया जाता है। तमिलनाडु में बोली प्रक्रिया के बिना सरकारी जमीन प्राइवेट आईटी कंपनियों को आवंटित किए जाने पर वह सरकार के दबाव के सामने अड़ गए। 

ये होंगी चुनौतियां 
दास को चीफ बनाने का फैसला इस रूप में देखा जा सकता है कि केंद्रीय बैंक सरकार के नजरिए को ध्यान में रखकर चले। आरबीआई और सरकार के बीच मतभेद का एक बड़ा कारण प्रॉम्ट करेक्टिव ऐक्शन (PCA) फ्रेमवर्क था, जिसके तहत अत्यधिक फंसे कर्ज की वजह से 11 सरकारी बैंकों को रखा गया। सरकार का कहना है कि इससे पूंजी प्रवाह पर बुरा असर पड़ा। 

आरबीआई के नए चीफ के रूप में उनके सामने केंद्रीय बैंक और सरकार के बीच मौजूद अनसुलझे मुद्दे होंगे। आरबीआई का रिजर्व और निर्णयकारी प्रक्रिया में आरबीआई बोर्ड की भूमिका, दो अहम मुद्दे होंगे। 

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