अपने बुजुर्गों को स्मरण करने के लिए सनातन धर्म में हर महीने की अमावस्या तिथि है और 15 या 16 दिन चलने वाला श्राद्ध या महालय पर्व है। श्राद्ध पर्व इस बार 24 सितंबर से 8 अक्तूबर तक मनाया जाएगा। भाद्रपद पूर्णिमा से चलने वाला महालय पर्व सर्वपितृ अमावस्या के दिन समाप्त हो जाता है। जिनको अपने-अपने पूर्वजों की तिथि पंचांग के अनुसार याद नहीं है, वे सर्वपितृ अमावस्या 8 अक्तूबर को ही श्राद्ध करें। ध्यान रहें धन होने पर श्राद्ध में कंजूसी न करें और धन के न होने पर सनातन धर्म के अमूल्य ग्रंथ विष्णु पुराण के अनुसार वन में या अपनी झोपड़ी में ही दोनों भुजाओं को उठाकर कहें-‘मेरे प्रिय पितरों, मेरा प्रणाम स्वीकार करें। मेरे पास श्राद्ध के योग्य न तो धन है, न सामग्री। आप मेरी भक्ति से ही लाभ प्राप्त करें।' यहां कम से कम जल तो जरूर ही अर्पित करें। माना जाता है कि श्राद्ध न करने पर पितर अपने वंशजों को शाप देकर लौट जाते हैं और इसी कारण भविष्य में होने वाली
संतानों की कुंडली में पितृदोष आदि देखने में आते हैं। यह तो सच है ही कि जीवित देवी-देवता हमारे माता-पिता ही हैं। उनकी जीवित रहते ही सेवा करनी चाहिए। श्राद्ध ऐसा विधान है, जिससे हमारी भावी पीढ़ी भी अपने बुजुर्गों का सम्मान करना सीखती है। अच्छी संतान जीवित रहते और मृत्यु के बाद भी अपने बुजुर्गों का आदर सम्मान करती है।
कब करें श्राद्ध :कम से कम पंचमी से अष्टमी या फिर दशमी से अमावस्या तक तो श्राद्ध जरूर करना चाहिए। बिल्कुल भी समय न होने पर सर्वपितृ अमावस्या को जरूर समय निकाल कर अपने पितरों के लिए तिल-जल दान तो अवश्य ही करें।
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