बचपन में लकडी उठाने का काम करती थीं, हुयीं खेलरत्न से सम्मानित!
वह तो सिर्फ और सिर्फ अर्जुन अवार्डी बनने का सपना देखती थीं। उन्हें उम्मीद भी थी कि एक न दिन उनके खाते में यह अवार्ड जरूर आएगा, लेकिन राजीव गांधी खेल रत्न मिलने पर वह अचंभित हैं। मीरा को खुशी इस बात की है कि उनके गुरु विजय शर्मा को द्रोणाचार्य और उन्हें खेल रत्न एक साथ मिला है।
खुद के लिए खरीदी साइकिल घर में ठहराए गरीब बच्चे
मीरा के मुताबिक उन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतने के बाद केंद्र और राज्य सरकार से जो भी कैश अवार्ड मिला उससे उन्होंने इंफाल में चार कमरों का एक घर खरीदा। उनके माता पिता और भाई अभी भी गांव में ही रहते हैं, लेकिन उन्होंने इस घर में गांव और पड़ोसी गांव के गरीब बच्चों को ठहराया है।
मीरा के मुताबिक उन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतने के बाद केंद्र और राज्य सरकार से जो भी कैश अवार्ड मिला उससे उन्होंने इंफाल में चार कमरों का एक घर खरीदा। उनके माता पिता और भाई अभी भी गांव में ही रहते हैं, लेकिन उन्होंने इस घर में गांव और पड़ोसी गांव के गरीब बच्चों को ठहराया है।
मीरा के मुताबिक उन्हें इंफाल में ट्रेनिंग के लिए गांव से दर दर की ठोकरें खाकर आना पड़ता था। उन्हें इंफाल में ठहरने की जगह नहीं मिलती थी क्यों कि पैसे इतने नहीं होते थे। उन्हें मालूम है कि गांव से आने वाले बच्चों को इंफाल में किस तरह की कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। इसी वजह से उन्होंने इंफाल में ट्रेनिंग करने वाले कुछ गरीब बच्चों को अपने नए घर में ठहराया है।
मीराबाई चानू: जंगल में लकड़ियां उठाने वाली लड़की बन गई है खेल रत्न!
महिला वेटलिफ्टर मीराबाई चानू को देश के सबसे बड़े पुरुस्कार राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित हुयीं. उनके साथ टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली को भी राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार मिला।. विराट कोहली को तो पूरा देश जानता है लेकिन चानू को शायद ज्यादा लोग नहीं जानते. इस वेटलिफ्टर ने बेहद ही साधारण परिवार में जन्म लिया और जीवन में काफी दर्द झेले लेकिन इसके बावजूद चानू ने हार नहीं मानी, आइए एक नजर डालते हैं चानू के अबतक के सफर पर.
8 अगस्त 1994 को जन्मी मीराबाई मणिपुर की रहने वाली हैं. इम्फाल से 20 किलोमीटर दूर नोंगपोक काकचिंग गांव में गरीब परिवार में जन्मी चानू छह भाई बहनों में सबसे छोटी हैं.
शुरुआत उन्होंने इंफाल के खुमन लंपक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से की थी.
मीराबाई चानू 11 साल की उम्र में अंडर-15 चैंपियन बनीं थीं और 17 साल की उम्र में जूनियर चैंपियन का खिताब अपने नाम किया था. लोहे का बार खरीदना परिवार के लिए भारी था तो उन्होंने बांस से ही बार बनाकर अपनी मेहनत जारी रखी.
चानू के अंदर बड़ी वेटलिफ्टर बनने की झलक बचपन में ही दिख गई थी. चानू अपने बड़े भाई के साथ जंगल में लकड़ियां बीनने जाती थीं. एक बार जंगल में उनका बड़ा भाई लकड़ियों का भारी गठ्ठर नहीं उठा पाया लेकिन उनसे चार साल छोटी चानू जो कि उस वक्त सिर्फ 12 साल की थीं उन्होंने उस गठ्ठर को आसानी से उठा लिया. इसके बाद वो वेटलिफ्टिंग के खेल में ही आगे बढ़ीं.
शुरुआत उन्होंने इंफाल के खुमन लंपक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से की थी.
मीराबाई चानू 11 साल की उम्र में अंडर-15 चैंपियन बनीं थीं और 17 साल की उम्र में जूनियर चैंपियन का खिताब अपने नाम किया था. लोहे का बार खरीदना परिवार के लिए भारी था तो उन्होंने बांस से ही बार बनाकर अपनी मेहनत जारी रखी.
चानू के अंदर बड़ी वेटलिफ्टर बनने की झलक बचपन में ही दिख गई थी. चानू अपने बड़े भाई के साथ जंगल में लकड़ियां बीनने जाती थीं. एक बार जंगल में उनका बड़ा भाई लकड़ियों का भारी गठ्ठर नहीं उठा पाया लेकिन उनसे चार साल छोटी चानू जो कि उस वक्त सिर्फ 12 साल की थीं उन्होंने उस गठ्ठर को आसानी से उठा लिया. इसके बाद वो वेटलिफ्टिंग के खेल में ही आगे बढ़ीं.
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