महात्मा गांधी का बचपन !

बाल मन -बच्चों के लिए विशेष 










महात्मा गांधी के बचपन की कहानी
सत्य और अहिंसा के माध्यम से देश को आजादी दिलाने वाले महात्मा गांधी के बचपन के किस्से काफी रोचक हैं। उनके स्कूल के दिन आज के बच्चों से एकदम अलहदा थे। इसका खुलासा खुद उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ में तो किया ही है।
महात्मा गांधी के बचपन की कहानी
साथ ही उनके बचपन से जुड़े कुछ यादगार किस्से राजकोट के हाईस्कूल में सात वर्ष तक प्रधानाचार्य रहे जेएम उपाध्याय ने भी अपनी किताब में किए हैं। इस लेख के जरिए ऐसे ही कुछ यादगार किस्से हम आपको आगे की स्लाइड में बताएंगे।
नौकर की जेब से पैसे चुराने शुरू किए
गांधी जी को एक रिश्तेदार के साथ बीड़ी पीने का शौक लग गया। उनके पास बीड़ी के लिए पैसे तो होते नहीं थे, इसलिए उनके काकाजी बीड़ी पीकर जो ठूठ छोड़ देते थे, गांधीजी उसी को चुराकर अकेले में रिश्तेदार के साथ पिया करते थे। लेकिन बीड़ी की ठूठ हर समय तो मिल नहीं सकती थी, इसलिए उन्होंने घर के नौकर की जेब से पैसे चुराने शुरू किए।
अब समस्या यह आई कि जो बीड़ी वे लाते थे, उसे छिपाएं कहां। चुराए हुए पैसों से लाई गई बीड़ी भी कुछ ही दिन चली। फिर उन्हें ऐसे पौधे के बारे में पता चला जिसके डण्ठल को बीड़ी की तरह पिया जा सकता है। लेकिन जब उन्होंने उस डण्ठल को बीड़ी की तरह पिया तो उन्हें संतोष नहीं हुआ।
शर्मीले स्वभाव के थे गांधी जी
गांधी जी ने आत्मकथा ‘सत्य व उसके प्रयोग’ में बचपन के बारे में लिखा है कि पोरबन्दर से पिताजी राजकोट गए। तब सात साल की उम्र में मुझे राजकोट की ग्रामशाला में भरती कराया गया। मैं मुश्किल से साधारण श्रेणी का छात्र रहा होउंगा। ग्रामशाला से उपनगर की शाला में और वहां से हाईस्कूल में। यहां तक पहुंचने में मेरा बारहवां वर्ष बीत गया।

मैंने इस बीच किसी भी समय शिक्षकों को धोखा नहीं दिया। न ही तब तक मेरा कोई मित्र बना। मैं बहुत शर्मीले स्वभाव का लड़का था। घंटी बजने के समय पहुंचता और पाठशाला के बंद होते ही घर भागता। ‘भागना’ शब्द इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि बातें करना मुझे अच्छा नहीं लगता था । यह डर भी रहता था कि कोई मेरा मजाक उड़ाएगा तो कैसे होगा?
शिक्षक ने बूट की नोक मारकर सावधान किया
गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में हाईस्कूल के पहले ही वर्ष की, परीक्षा के समय की एक घटना का उल्लेख किया है। शिक्षा विभाग के इन्सपेक्टर विद्यालय का निरीक्षण करने आए थे। उन्होंने छात्रों को अंग्रेजी के पांच शब्द लिखाए। उनमें एक शब्द ‘केटल’ था। मैंने उसके हिज्जे गलत लिखे थे।
शिक्षक ने अपने बूट की नोक मारकर मुझे सावधान किया। मुझे यह ख्याल ही नहीं हो सका कि शिक्षक मुझे पास वाले लड़के की पट्टी देखकर हिज्जे सुधारने के लिए कह रहे थे। मैंने यह माना कि शिक्षक तो यह देख रहे हैं कि हम एक-दूसरे की पट्टी में देखकर चोरी न करें। सभी के पांचों शब्द सही निकले और मैं बेवकूफ ठहरा। शिक्षक ने मुझे मेरी बेवकूफी बाद में समझाई।
गांधी जी की तीन सगाई हुई
आत्मकथा में गांधी जी ने यह भी लिखा है कि मेरी एक-एक करके तीन बार सगाई हुई थी। ये तीन सगाई कब हुई, इसका मुझे भी नहीं पता। मुझे बताया गया था कि दो कन्यायें एक के बाद बाद एक मर गई। इसीलिए मैं जानता हूं कि मेरी तीन सगाई हुई थी।
गांधी जी की तीन सगाई हुई
तीसरी सगाई मेरी सात साल की उमर में हुई होगी। सगाई का मुझे कुछ नहीं याद। लेकिन विवाह का मुझे पूरा-पूरा स्मरण हैं। तीन भाईयों में से सबसे छोटे गांधी जी के सबसे बड़े भाई की शादी पहले ही हो चुकी थी। गांधी जी के परिवार वालों ने एक साथ तीन विवाह करने का निश्चय किया।

मेरे मझले भाई, काकाजी के छोटे लड़के और मेरा विवाह साथ-साथ हुआ। इनमें मैं सबसे छोटा था। गांधी जी ने लिखा कि इस तरह विवाह करना सिर्फ बड़ों की सुविधा और खर्च की थी बात थी।
कई स्कूल बदले
जेएम उपाध्याय की ‘गांधीजी चाइल्डहुड’ नामक किताब में बताया गया है कि दस वर्ष की आयु तक मोहनदास करमचंद गांधी ने कई स्कूल बदल लिए थे। सभी स्कूलों को बदलने का अलग-अलग कारण रहा। किताब में यह भी बताया गया कि वह होनहार विद्यार्थी नहीं थे। परीक्षा परिणामों में उनका प्राप्तांक 45 से 55 प्रतिशत के बीच ही रहता था।
अकसर कम उपस्थिति रहती थी
गांधीजी चाइल्डहुड में ही लिखा है कि कक्षा में बालक मोहनदास की उपस्थिति बहुत कम रही। कक्षा तीसरी में वे 238 दिनों में 110 दिन ही स्कूल गए। इससे यह साफ था कि वह कम ही स्कूल जाते थे। लेकिन उनकी छवि एक अनुशासित विद्यार्थी के रूप में थी।
दो बार एक ही क्लास में बैठना पड़ा
कम उपस्थिति का ही कारण था कि मोहनदास को एक ही कक्षा में दो साल तक बैठना पड़ा। दूसरे साल उस कक्षा में गांधी जी ने मेहनत की और उनके पहले से बेहतर अंक आए। दूसरी बार परीक्षा देने पर गांधी जी के 66.5 प्रतिशत अंक और 8वीं रैंक आई।




मिडिल स्कूल में भी गांधी जी की उपस्थिति अच्छी नहीं थी। मोहनदास के छुट्टी मारने का कारण अक्सर पिताजी की तबीयत खराब रहना था। जूनियर स्कूल में मोहनदास का साथी त्रिभुवन भट्ट के अक्सर उनसे बेहतर अंक आते थे। त्रिभुवन एक बाबू बना।

हाईस्कूल में गांधीजी का दोस्त एक मुस्लिम था। उस स्कूल का हेडमास्टर पारसी था। स्कूल के भवन को जूनागढ़ के नवाब ने बनवाया था। इस तरह विभिन्न धर्माें के प्रभाव में गांधीजी बड़े हुए और उन पर इसका प्रभाव आजीवन रहा।

हाईस्कूल में गांधीजी का दोस्त एक मुस्लिम था। उस स्कूल का हेडमास्टर पारसी था। स्कूल के भवन को जूनागढ़ के नवाब ने बनवाया था। इस तरह विभिन्न धर्माें के प्रभाव में गांधीजी बड़े हुए और उन पर इसका प्रभाव आजीवन रहा।
हाईस्कूल में गांधीजी का दोस्त एक मुस्लिम था। उस स्कूल का हेडमास्टर पारसी था। स्कूल के भवन को जूनागढ़ के नवाब ने बनवाया था। इस तरह विभिन्न धर्माें के प्रभाव में गांधीजी बड़े हुए और उन पर इसका प्रभाव आजीवन रहा।









E&E News -Shikha Verma

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