विद्यापीठ का एक सच

बनारस के महात्मा गांधी विद्यापीठ विश्वविद्यालय आज महात्मा गांधी के विचार और उनकी सोच को भी धूमिल कर रहा है.. आज का विद्यापिठ जहां शिक्षा व विभागीय कार्यों पर नजर डाले तो समयसारणी तो लगा है परंतु वहां उपस्थित अध्यापक कक्षा में छात्रों को शिक्षा देना अपना उत्तरदायित्व नहीं बल्कि काम मात्र ही समझते हैं ,आज बात करते हैं विद्यापीठ की सुविधाएं जब यह बात सामने आती है और नजर डाला गया तो कुछ सच ऐसा आया जिसको बयां करना भी शब्दो में तोहीन होगी एक नजर डालते हैं हॉस्टल पर कुछ हॉस्टलर ने जो दिखाया और बताया आखिर उनमें उन का क्या कसूर है ,ओ तो प्रती ब़र्ष ३८०००/ रू रहने व खाने का पेड किये है फिर बने हुये दाल मे किडी और सडा हुआ पदा़र्थ का सेवन क्यों करे.....वहां के बच्चों ने एक बात कही कि हम लोगों के साथ कैदियों जैसा बर्ताव किया जाता है आखिर क्यों बच्चों के साथ कैदियो जैसा व्यवहार किया जा रहा है विद्यापिठ प्रशासन के द्वारा क्या  ये बच्चे विद्यापीठ हॉस्टल की कैदी बन चुके हैं या कैदी बनने के लिए आए हैं जो वहां सुना और देखा मन व्याकुल हुआ और यह कहने पर मजबूर हो गया बाहर के कुलपति महोदय आप की निगाहें क्यों नहीं करती है निगेहबानी......?? करोड़ों रूपए आते हैं वहां और कैंपस में पीने का पानी तक नहीं कुछ छात्रों का कहना था कि कोई R O मशीन नहीं लगा है ना ही कोई पानी के सुलभ व्यवस्था की गई है यदि रात को शौच जाना पडता है तो हम लोग पास की बैरक में पानी लेने जाते हैं तो फिर शौच ले जाते हैं जब कि प्रत्येक वर्ष विश्वविद्यालय के रख-रखाव अौर सुविधा के नाम पर करोड़ों रुपए आते हैं यदि कोई आवाज उठाने की कोशिश करता है तो कुलपति महोदय द्वारा बच्चों को निष्काशन व समझा देने की बात कर डराया व धमकाया जाता है ! क्या तिरुपति महोदय को शोभा देता है क्या बच्चों का दमन नहीं किया जा रहा है अगर बच्चों का दमन किया जाता है तो और बच्चों की आवाज भी  कुचलने का काम क्यों किया जा रहा है... उसके पीछे का सच क्या है आइए जानते हैं एक और सच जो वहां के जवानों ने बताई कुछ दिन पहले हुये दिछॉत  समारोह में कुलपति महोदय ने आये  पदाधिकारियों व B SF को भी बाहर से पानी की बोतलें मँगा  कर अपनी इज्जत और अपने शान को बचाई और तो और कौन है इसका जिम्मेदार इन सब के पीछे का सच क्या है जिसको सामने नहीं आने दिया जा रहा है क्या होता है उस बजट का जो करोड़ रुपए सरकार रख-रखाव पर देखभाल के लिए प्रशासन को देती है यह है दुर्लभ कड़वा सच अभी चार-पांच दिन पहले की घटना है जो वहां सारे छात्रावास के बच्चे धरने पर बैठे थे दोनों तरफ से गेट बंद करवा दिया गया और मीडिया के सामने ही वहां उपस्थित बच्चों ने बाथरुम जाने की बात कही तो वहां उपस्थित पदाधिकारियों ने कहा कि जहां बैठे हो वहीं पर बाथरूम कर लो और किस से पूछकर बैठे हो धरना देने ,तो कॉलेज प्रशासन  के पदाधिकारीयों का यह रवैया वही याद दिलाता है कि कौन सी रहा है यह कौन सी चाह है जो हमारे महात्मा गांधी बापू के विचारों के तले जिंदगी जीने के लिये एक अपना खुद का स्वाभिमान समझते हैं क्या इसका कोई जवाब है विद्यापीठ विश्वविद्यालय प्रशासन के पास ,नहीं क्योंकि कुलपति महोदय के पास तो टाइम ही नहीं बच्चों से बात करने तक का..... तो कौन है इसका जिम्मेदार और क्या है उनकी जिम्मेदारी कथनी और करनी में बहुत ही अंतर है वहां का उपस्थित छात्रों ने
वहां का स्वरूप जो ब्यॉ किया वह सुनने के बाद मन  दुखी हुआ है विचारों का भी हनन हुआ कई सारे उपस्थित छात्रों ने कहा कि जिस तरीके से महात्मा गांधी जी के विचारों के तले लोग जिंदगी को प्रयोगिक विज्ञान को समाज के लोग बड़े-बड़े प्रयोग कर रहे हैं ,वही उन्हीं के नाम के साथ इतना बड़ा मजाक और उनकी गरिमा को भी चोट पहुंचाया जा रहा है और यदि हम लोग आवाज उठाने की कोशिश कर रहे हैं तो हम लोग के साथ दुर्व्यवहार और विद्यालय से निष्काशन तथा अभद्र शब्दों का प्रयोग कर समझाने बुझाने की भी कोशिश की जा रही है  विद्यापीठ प्रशासन क दवारा पदाधिकारियों की अनैकतिकता के पाठ से ही विद्यापीठ विश्वविद्यालय अपने आप को खुशहाल कर सकता है......एक कहावत है याद आ रहा है..जैसी करनी वैसी भरनी...!! कृष्णा पंडित !!

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