अलौकिक मगर एक सत्य कृष्णा पंडित के साथ....

एक बार समर्थ गुरु रामदास जी अपने शिष्य शिवजी के साथ एक अंजान मार्ग से जा रहे थे ।रास्ते मे एक नदी आ गई  रामदास जी ने शिवजी से कहा --" शिवा  , तुम यही रुको ! मै नदी की गहराई नाप कर आता हूँ  "।
पर शिवा ने रामदास जी की बात अनसुनी करते हुए  , झट नदी मे छलाँग लगा दी ।फिर कुछ ही पल मे , दूसरे किनारे तक चक्कर लगा , वापिस लोट आया ओर बोले। ---' गुरु देव  ! नदी न तो अधिक गहरी है ओर न ही इसमे नर भक्षी जीव है ।अतः हम सहज नदी पार कर सकते है ।
रामदास-- उखड़े स्वर मे कहा -'शिवा , आज  पहली बार तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है कयो ?
शिवा --हाथ जोड़कर,  नेत्रो मे आँसू भर कर बोला -- गुरु देव,  मेरा जीवन तुच्छ है , आपका अनमोल  ! यदि मुझे कुछ हो जाता , तो आप सैकड़ों ओर शिवा खडे कर लेते ।किन्तु यदि आपको कुछ हो जाता तो , हजारों शिवा मिल कर भी एक आप जैसे गुरु रामदास जी को नही बन पाते ।'
शिवा के ऐसे भाव सुनकर,  गुरु रामदास जी प्रसन्नता से दोनो हाथ उठा कर आशीष मुद्रा मे उठाये ! शिवा के प्रेम की पराकाश्टा को देख बहुत ही खुश हुए ।
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विचार
पूर्ण गुरू जब जीवन मै मिलते है तो ही जीवन का कल्याण होता है एक शिष्य अपना पूरा जीवन भी लगा कर गुरु का ऋण नह उतार सकता !
साकार ही निराकर का दर्शन कराते है
ऐसे गुरु के वचन का यु तो उल्लंघन नही करना चाहिए पर भक्त जब भावुक हो कर कभी कभी प्रेम वंश होकर ऐसा कर जाते है तब गुरु उसके पिछे छिपी भावना को ही देखते है ।जैसे ---
विदूरानी  ने केले के छिलके कृष्ण को प्राम वश दिये
शबरी मा ने झूठे बेर राम को खिलाए बात।
        ॐसतगुरू नमः

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