क्या सही है ?पत्नी से जबरदस्ती सम्बन्ध बनाना !

पति द्वारा पत्नी के साथ जबरदस्ती सेक्स संबंध यानी मैरिटल रेप को लेकर काफी अरसे से बहस चल रही है। इसका ही परिणाम है कि भारत सरकार इस तरह के बलात्कार को भी अपराध की श्रेणी में लाने के लिए संसद में एक बिल पेश करने वाली है। आखिर स्त्रियों के पास पति को सेक्स संबंध के लिए ना कहने का अधिकार क्यों नहीं होना चाहिए। 




शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव
यह एक ऐतिहासिक मिथ है कि मैरिटल रेप में महिलाओं को कम आघात पहुंचता है। इस क्षेत्र में हुए अनुसंधान इस मिथ को गलत साबित करते हैं। ये बताते हैं कि महिलाओं को मैरिटल रेप के परिणाम उम्र भर भुगतने पड़ते हैं। शारीरिक रूप से प्राइवेट पार्ट्स पर चोट आना, मसल्स फटना, उल्टी और थकान जैसी शिकायत हो सकती है। शॉर्ट टर्म असर के रूप में चिंता, सदमा, डिप्रेशन और सेक्स के प्रति डर के साथ-साथ उनके भीतर आत्महत्या की प्रवृत्ति भी पैदा हो सकती है।
भारत में स्थिति क्या है
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था, बलात्कार मूलभूत मानवाधिकार के खिलाफ है और यह संविधान की धारा 21 का उल्लंघन है, जिसके तहत इनसान को जीने का अधिकार मिलता है। लेकिन इसके बावजूद फिलवक्त तक हमारा कानून विवाहित महिलाओं के साथ पतियों द्वारा किये गये बलात्कार को अपराध से मुक्त मानता है। और इससे इस धारणा को बल मिलता है कि महिलाओं के पास अपने पति के साथ सेक्स संबंध से इनकार करने का कोई हक नहीं है और यह स्थिति पतियों को अपनी पत्नियों के साथ बलात्कार का लाइसेंस देती दिखाई पड़ती है। इस मामले में केवल दो तरह की महिलाएं कानून से सुरक्षा पा सकती हैं। एक वे, जिनकी उम्र पंद्रह साल से कम है और दूसरी वे, जो अपने पतियों से अलग रह रही हैं। सरकार इसी संदर्भ में एक बिल लाने पर विचार कर रही है। 

बहस के मूल बिंदू
यह बहस लगातार जारी है कि मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाया जाए या नहीं। इसे अपराध की श्रेणी में न लाने के पीछे जो तर्क दिये जा रहे हैं, वे कहते हैं-यह अनकॉमन होते हैं, इसलिए इन्हें कानूनी शक्ल नहीं दी जानी चाहिए। दूसरा तर्क है, इससे पहले से ही बोझ से दबी न्यायप्रणाली पर मुकदमों का बोझ और बढ़ेगा। एक तर्क यह भी है कि पतियों से असंतुष्ट और क्रोधित महिलाएं सीधे-सादे पतियों को फंसाने के लिए उन पर बलात्कार का आरोप लगा कर कभी भी उन्हें फंसा सकती हैं। और सबसे मजबूती के साथ यह तर्क दिया जाता है कि इससे विवाह और परिवार की अवाधारणा खतरे में पड़ सकती है। लेकिन यह तर्क कितने खोखले हैं, यह इस बात से समझा जा सकता है। पहली बात अगर यह बहुत अनकॉमन हैं तो अदालतों पर बोझ कैसे बढ़ेगा? दूसरी बात, अगर महिलाएं पतियों को फंसाने के लिए इसका इस्तेमाल करेंगी तो उसके लिए उनके पास दूसरे (दहेज, घरेलू हिंसा) जैसे तमाम कानून है, फिर वे इसका ही इस्तेमाल क्यों करेंगी? और तीसरा, विवाह और परिवार को बचाने के लिए महिलाएं ही आखिर कब तक सब कुछ सहती रहेंगी? दूसरी ओर इसे अपराध के दायरे में लाने वालों के पास ज्यादा पुख्ता तर्क हैं। हाल ही में एक गैर सरकारी संगठन द्वारा किये गये अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि यह बहुत आम अपराध है, जिसे बहुत कम दर्ज किया जाता है। अध्ययन यह भी बताता है कि हर सात में एक महिला कभी न कभी पति द्वारा बलात्कार का शिकार होती है। एक तर्क यह भी दिया जाता है कि इस तरह के बलात्कार को अदालत में साबित करना बहुत मुश्किल होगा। सवाल यह है कि अगर किसी अपराध को साबित करना मुश्किल है तो क्या उसके लिए बने कानूनों को खत्म कर देना चाहिए?
कुछ सुझाव



प्रगतिशील सोच के लोगों द्वारा इस मामले में कुछ सुझाव आम राय से दिये जा रहे हैं। कुछ काबिले गौर हैं। संसद द्वारा मैरिटल रेप को एक अपराध के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए और इसके लिए वही सजा होनी चाहिए, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कारी को दी जाती है। इस तथ्य के बावजूद कि दोनों पार्टियां शादीशुदा हैं, सजा कम नहीं की जानी चाहिए। इस मामले में तलाक का विकल्प महिलाओं के पास होना चाहिए। आज अमेरिका, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड जैसे कई देशों में मैरिटल रेप को अपराध माना जा चुका है, इसलिए 100वें अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इस वर्ष में महिलाओं को बेडरूम में होने वाले बलात्कारों से मुक्ति मिलनी ही चाहिए।
मेरी शादी को दस साल हो गये हैं। शुरू-शुरू में मेरा पति रोज रात को मेरे साथ सेक्स संबंध बनाता था। मुङो समझ नहीं आता था कि मैं कैसे उसे मना करूं। कई बार मैंने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना। अब मैंने ही स्थिति से समझौता कर लिया है और सोचती हूं कि जैसे चल रहा है, वैसे ही चलने दूं अन्यथा घर में और ज्यादा झगड़ा होगा।
(पूर्वी दिल्ली में रहने वाली 35 वर्षीया रजनी)
लगभग छह साल पहले जब मेरी शादी हुई तो मुझे सेक्स संबंधों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। मेरे पति ने मुझे कुछ समझाने या बताने की बजाय सुहागरात के दिन ही मेरे साथ जबरदस्ती संबंध बनाये। मुझे बुरा लगा, लेकिन मेरी सहेलियों ने मुझे समझाया कि सुहागरात पर ऐसा ही होता है। तो मुझे लगा कि यही ठीक होगा। सो मैंने इस स्थिति को ही सही मान लिया है।             
(मयूर विहार में रहने वाली 28 वर्षीया रेशमा)
जाहिर है निम्न मध्यवर्गीय, मध्यवर्गीय और उच्च विवाहित महिलाओं को अक्सर अपने पति द्वारा बलात्कार का शिकार होना पड़ता है। सिमोन द बोउवार ने एक जगह कहा है-स्त्री पैदा नहीं होती, बल्कि बनाई जाती है। भारतीय समाज में स्त्रियों को इसी रूप में ढाला गया कि वे पुरुष की अर्धागिनी हैं, सहनशीलता की मूर्ति हैं और उनके भीतर सब कुछ बर्दाश्त करने की ताकत है। वे अपने लिए नहीं जीतीं। पहले वे अपने पिता और भाइयों की इज्जत के लिए जीती हैं, फिर अपने पति की इज्जत के लिए और बाद में अपने बेटों की इज्जत के लिए। यानी उन्हें अपने लिए जीने का कोई हक नहीं होता! दूसरी तरफ पुरुष भी पैदा नहीं होता, बल्कि बनाया जाता है। उसे इस रूप में बनाया जाता है कि वह मर्दानगी और ताकत का पर्याय है, स्त्री उसकी संपत्ति है, वह उसे खुश करने के लिए पैदा हुई है, इसलिए वह पति द्वारा किये जा रहे बलात्कार को चुपचाप बर्दाश्त करती रहती है, महज इसलिए कि पति-पत्नी का ‘पवित्र रिश्ता’ टूट न जाए।
क्या है मैरिटल रेप
आम जुबान में कहें तो मैरिटल रेप का सीधा-सा अर्थ है, जब पति पत्नी की इच्छा के बिना उसके साथ शारीरिक संबंध बनाता है। 1970 में पहली बार मैरिटल रेप पर अमेरिका में चर्चा शुरू हुई तो आमतौर पर पति-पत्नी के बीच तीन प्रकार के बलात्कार पाये गये। पहला, बैटरिंग रेप्स। इसमें महिलाएं शारीरिक और यौन हिंसा की शिकार होती हैं। इसमें पति पत्नियों की इच्छा के खिलाफ सेक्स संबंध बनाने के लिए हिंसा का सहारा लेता है और उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित करता है। दूसरा, फोर्स टू रेप। इस तरह के बलात्कार में पति केवल उतनी ही ताकत का इस्तेमाल करता है, जिससे वह शारीरिक संबंध बना पाये। इसमें वह पत्नी का मारता-पीटता नहीं। और तीसरा है जुनूनी रेप। इसमें पति पत्नी को प्रताड़ना देने में खास तरह के सुख का अनुभव करता है।
यहां मैरिटल रेप है कानूनी
अफगानिस्तान में पिछले साल जब पूरी दुनिया 99वां महिला अंतरराष्ट्रीय वर्ष मनाने की तैयारियों में जुटी थी, उस समय अफगानिस्तान में महिलाओं के खिलाफ एक कानून पास करने की तैयारियां चल रही थीं। मार्च 2009 में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने जिस बिल पर हस्ताक्षर किये हैं, वह बिल मैरिटल रेप को कानूनी दर्जा देता है। यह कानून एक पुरुष को उस स्थिति में भी पत्नी से सहवास करने की इजाजत देता है, जब पत्नी सहवास के लिए मना कर रही हो। बिल की आलोचना करने वाले इस बात पर आश्चर्य कर रहे हैं कि राष्ट्रपति ने किस तरह इस बिल पर हस्ताक्षर कर दिये। दिलचस्प बात यह भी है कि संसद के निचले सदन के 249 सदस्यों में से 68 महिला सदस्य भी हैं और कई महिला सदस्यों ने भी इस बिल के पक्ष में मतदान किया है। इस बिल के खिलाफ मत देने वाली फौजिया कूफी का कहना है कि कुछ सदस्यों को इस बात का आभास भी नहीं था कि उन्होंने किस चीज के पक्ष में मत दिया है। अफगान संविधान का आर्टिकल 22 सभी पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार देने का वादा करता है और इसी आधार पर अफगानिस्तान की महिलाएं यह उम्मीद कर रही हैं कि सुप्रीम कोर्ट शायद यह रूलिंग दे कि नया कानून आर्टिकल 22 का उल्लंघन है।
आने वाला है नया विधेयक
भारत सरकार महिलाओं को पतियों की जबरदस्ती से बचाने के लिए जल्द ही एक विधेयक लाने जा रही है। प्रस्तावित कानून में सरकार ने वैवाहिक दुश्कृत्य यानी पति द्वारा पत्नी के साथ जबरदस्ती सेक्स संबंध को अलग से पेश करने की योजना बनाई है। अब तक इस तरह के मामले को घरेलू हिंसा कानून के तहत ही निपटा जाता रहा है। गौरतलब है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रलय (डब्ल्यूसीडी) और राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की सिफारिशों के बाद कानून मंत्रलय ने प्रस्तावित कानून का एक ड्राफ्ट तैयार किया है। इसमें आईपीसी, सीआरपीसी 1973 और साक्ष्य कानून 1872 के कुछ खंडों में संशोधन कर उन्हें दुश्कृत्य की नयी परिभाषा के अनुसार बदला जा रहा है। इस प्रस्तावित बिल के बाद मैरिटल रेप को एक अपराध माना जाएगा और पत्नी की शिकायत के बाद पति को तीन साल की सजा तक हो दी जा सकेगी।
लाइसेंस टू रेप
1985 में अनुसंधानकर्ता डेविड फिन्केल्होर और यल्लो की न्यूयॉर्क, फ्री प्रेस से एक किताब प्रकाशित हुई-लाइसेंस टू रेप: सेक्सुअल अब्यूज ऑफ वाइव्स। इस किताब को लिखने से पहले उन्होंने 300 विवाहित महिलाओं को एक प्रश्नपत्र दिया। उन्होंने इन महिलाओं से पूछा था कि क्या आपके पतियों ने सेक्स संबंध बनाने के लिए आपसे कोई जोर- जबरदस्ती की। इनमें से दस फीसदी महिलाओं को जवाब ‘हां’ था। उनके द्वारा दिये गये प्रश्नपत्र में और भी कई सवाल थे। महिलाओं से पूरा डाटा एकत्रित करने के बाद इन दोनों लेखकों ने उम्र, शिक्षा, आय के आधार पर यह पुस्तक लिखी। इन दोनों लेखकों ने लगभग 50 ऐसी महिलाओं से इंटरव्यू भी किये, जो अपने पतियों के यौन उत्पीड़न का शिकार थीं। संभवत: मैरिटल रेप पर लिखी गयी यह पहली पुस्तक है, जिसने वैवाहिक रिश्तों के भीतर होने वाले बलात्कारों पर रोशनी डाली है। लेखक ने इस किताब में उन परिस्थितियों पर भी रोशनी डाली है, जिनमें बलात्कार होते हैं या हो सकते हैं।

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