क्यों नहीं खोजे गए सुभाष चंद्र बोस, पढ़िए पूरी कहानी.....

Krishna Pandit
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From U.P.



क्लासिफाइड डॉक्युमेंट्स से खुलासा हुआ है कि
पीएमओ और विदेश मंत्रालय के मतभेद के चलते
ही भारत सरकार ने रूस से नेताजी सुभाष
चंद्र बोस के गायब होने के बारे में जानकारी हासिल करने
का प्लान ड्रॉप कर दिया था।
नेताजी के परिवार ने नेताजी की
फाइल्स को सार्वजनिक करने की मांग की
है। माना जाता है कि बोस की मौत 18 अगस्त, 1945 को
हुए एक प्लेन क्रैश में हुई थी, लेकिन कुछ
शोधकर्ताओं दावा करते रहे हैं कि 1945 के बाद बोस सोवियत संघ में
ही रहे और उसके बाद भारत आ गए थे।
The Times of India के पत्रकार और शोधकर्ता Anuj Dhar को
मिले क्लासिफाइड डॉक्युमेंट्स से खुलासा हुआ है कि
पीएमओ ने मार्च 1996 में ही मॉस्को में
भारत के राजदूत से नेताजी के गायब होने के बारे में
जानकारी हासिल करने के लिए कहा था।
हालांकि, आठ महीने बाद नवंबर 1996 में विदेश
मंत्रालय ने इस बारे में सरकार की मदद लेने
की जगह शोध संस्था एशियाटिस सोसाइटी
पर ही निर्भर रहने का मन बना लिया। माना जाता है कि
संस्था के पास केजीबी आर्काइव्ज तक
पहुंच थी। भारत सरकार नहीं
चाहती थी कि रूस के साथ रिश्तों में कोई
खटास आए।
विदेश मंत्रालय के तत्कालीन संयुक्त सचिव (ईस्ट यूरोप)
आरएल नारायण द्वारा 7 मार्च, 1996 को विदेश सचिव को भेजे गए
एक क्लासिफाइड डॉक्युमेंट के मुताबिक, रूस से
केजीबी आर्काइव्ज को एशियाटिक
सोसाइटी के शोधकर्ताओं के लिए खोलने के लिए कहना
उनके आधिकारिक बयान पर भरोसा न करने जैसा था।
हालांकि, इस फाइल पर पीएमओ की नोटिंग
से पता चलता है कि सरकार इस मामले पर आगे बढ़ना
चाहती थी। पीएमओ के
तत्कालीन संयुक्त सचिव ने 25 मार्च, 1996 को नोट पर
लिखा, 'पीएम चाहते हैं कि मॉस्को में हमारे राजदूत इस
मामले पर रूस की सरकार से जानकारी
हासिल करने की कोशिश करें। यह भी
बताएं कि जानकारी मांगने से रूस सरकार की
क्या प्रतिक्रिया हो सकती है।'
उसी साल 18 नवंबर को नारायण ने जवाब में लिखा कि
ऐसी जानकारी हासिल करने से रूस को
गलतफहमी हो सकती है। हालांकि,
उसी साल 12 जनवरी को विदेश सचिव को
भेजे गए एक नोट के मुताबिक सरकार ने रूस से आधिकारिक तौर पर
नेताजी पर जानकारी मांगी
थी, पर जवाब में कहा गया था कि ऐसा कोई सबूत
नहीं है कि 1945 में नेताजी रूस में थे।
गौरतलब है कि रूस में तीन तरह के आर्काइव्ज हैं।
दस्तावेज जो केजीबी के पास हैं, दस्तावेज
जो सरकार के पास हैं और पोलित ब्यूरो के पास मौजूद दस्तावेज।
नारायण ने जनवरी में एक नोट भेजा और बताया कि
संभवत: रूस सरकार ने बिना केजीबी के
आर्काइव्ज की पड़ताल किए ही जवाब दे
दिया होगा। नारायण ने कहा कि बेहतर रिसर्च के लिए सरकार को
मॉस्को के राजदूत को वहां के अधिकारियों की मदद से
केजीबी के आर्काइव्ज की
पड़ताल करने को कहा जाए। बताया जाता है कि तत्कालीन
विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इस मामले
पर आनन-फानन में एक मीटिंग भी बुलाई
थी। 14 जनवरी को हुई इस
मीटिंग में विदेश सचिव और नारायण मौजूद थे।
अधिकारियों ने यह भी बताया कि एशियाटिक
सोसाइटी ऑफ कोलकाता और इंस्टिट्यूट ऑफ औरिएंटल
स्टडीज (रूस) के समझौते के तहत शोधकर्ताओं का
एक ग्रुप इस मामले की पड़ताल करने के लिए पिछले
साल मॉस्को गया था। हालांकि, उन्होंने कहा कि जांच
केजीबी आर्काइव्ज के एक्सेस के बगैर
नहीं पूरी हो पाएगी। इसके
लिए उन्होंने सरकार से रूस सरकार से बात करने के लिए कहा था।

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